प्रशांत कटियार
आज मित्रता दिवस (Friendship Day) है। व्हाट्सएप, इंस्टाग्राम और फेसबुक पर हैप्पी फ्रेंडशिप डे की पोस्टों से सजी हैं। हर कोई किसी बेस्ट फ्रेंड के साथ सेल्फी डाल रहा है, पुराने स्क्रीनशॉट पोस्ट हो रहे हैं, और कॉपी पेस्ट किए गए कैप्शन के नीचे नकली इमोजी की भरमार है। लेकिन सवाल यह है क्या दोस्ती अब महज एक social media ट्रेंड बनकर रह गई है,मित्रता कभी वो रिश्ता था जो बिना किसी शर्त, स्वार्थ और दिखावे के निभाया जाता था। जहां दोस्त आपकी खामोशी पढ़ लेते थे, आंखों में छुपे दर्द को समझ लेते थे, और वक्त पर पीठ थपथपाना नहीं भूलते थे।
पर अब दोस्ती का मतलब रह गया है मेरे पोस्ट पर लाइक कर दो, “मेरी रील शेयर कर देना।आज के युग में दोस्ती शब्द की व्याख्या बदल चुकी है। वो दोस्त जो मुसीबत में भागकर आते थे, अब डू नॉट डिस्टर्ब मोड में रहते हैं। वो रिश्ते जो सच्चाई की नींव पर खड़े थे, अब सुविधाओं की जमीन पर लुढ़क चुके हैं।आज की दोस्ती जरूरत के हिसाब से बनती और टूटती है। क्लास नोट्स चाहिए तो दोस्ती, इंटरव्यू में रेफरेंस चाहिए तो दोस्ती, या फिर सोशल इवेंट में अकेलापन ना लगे तो दोस्ती। लेकिन जब आप टूटे होते हैं, तब वही तथाकथित बेस्ट फ्रेंड्स चुपचाप स्टेटस देख कर भी कुछ नहीं कहते।
क्या यही दोस्ती है जहां साथ होने का मतलब तभी तक है जब तक आप किसी काम के हैं फ्रेंडशिप, ये सब वो शोर है जो आज की दोस्ती को घुटनों पर ला चुका है। भावनाओं की गहराई अब मार्केटिंग की गहराई में दब गई है। मॉल्स और ऐप्स तय कर रहे हैं कि दोस्त को क्या गिफ्ट देना है, और इंसानियत तय नहीं कर पा रही कि दोस्त को कब गले लगाना है।
जरूर बचे हैं कुछ सच्चे दोस्त। जो आपके बुरे समय में आपके साथ खड़े रहें, बिना कहे मदद कर जाएं, और बिना किसी स्वार्थ के आपको अपनाएं वही असली दोस्त हैं। लेकिन अफसोस, ऐसे दोस्तों की तलाश आज चश्मे से करनी पड़ती है।मित्रता दिवस पर यह पूछना ज़रूरी है कि क्या हम अब भी दोस्ती को उतना महत्व देते हैं जितना शब्द मित्र का अर्थ है। अगर नहीं, तो शायद इस दिन को मित्रता की औपचारिक रस्म कह देना ज्यादा सटीक होगा। क्योंकि असली दोस्ती ना तारीख देखती है, ना तस्वीरें वो बस निभाई जाती है ख़ामोशी में, वक़्त पर, और बिना शोर किए।