लखनऊ: राजधानी में एक बार फिर जनप्रतिनिधि और अफसरशाही के बीच टकराव खुलकर सामने आया है। नगर निगम की मेयर सुषमा खर्कवाल (Mayor Sushma Kharkwal) ने नगर आयुक्त को पत्र लिखकर (by writing a letter) कड़ा ऐतराज जताया है। मेयर का आरोप है कि उन्हें निगम के अहम कार्यक्रमों में आमंत्रित नहीं किया जा रहा और कार्यों के निर्धारण में भी उनकी राय नहीं ली जा रही है।
नगर निगम द्वारा आयोजित सेवानिवृत्त कर्मियों के कार्यक्रम में मेयर को न बुलाना विवाद का मुख्य कारण बना। मेयर सुषमा खर्कवाल ने अपने पत्र में स्पष्ट रूप से लिखा है कि—
“मेरे पद की गरिमा के अनुरूप मुझे नगर निगम के कार्यक्रमों में सम्मिलित किया जाना चाहिए। कार्यों के आवंटन में मेरी राय नहीं ली जाती और यह प्रोटोकॉल के विरुद्ध है।”
मेयर द्वारा जारी इस पत्र के बाद नगर निगम में प्रशासनिक हड़कंप मच गया है। नगर आयुक्त से इस मुद्दे पर जवाब मांगा गया है। वहीं, सूत्रों की मानें तो मेयर और नगर आयुक्त के बीच पहले से ही मतभेद चल रहे थे, जो अब सार्वजनिक रूप में सामने आ गए हैं।
यह पहला मौका नहीं है जब लखनऊ में जनप्रतिनिधियों और अधिकारियों के बीच ठनी हो। इससे पहले कई बार विधायक और मंत्रियों ने भी अफसरशाही के खिलाफ नाराजगी जताई थी। अब मेयर का यह पत्र एक बार फिर से इस बहस को हवा दे रहा है कि अधिकारियों द्वारा जनप्रतिनिधियों की उपेक्षा आम होती जा रही है।
मेयर के पत्र को लेकर नगर निगम के भीतर ही नहीं, राजनीतिक गलियारों में भी चर्चा तेज हो गई है। सवाल उठ रहे हैं कि यदि जनप्रतिनिधि की उपेक्षा इस स्तर पर हो रही है तो आम जनता के लिए जवाबदेही कितनी प्रभावी रह जाती है?