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Monday, August 4, 2025

नीतियों पर जनदबाव भारी: योगी सरकार का स्कूल मर्जर पर यू-टर्न

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शरद कटियार

शासन-प्रशासन की नीतियां जब जनसरोकारों से कटने लगती हैं, तो विरोध और प्रतिरोध अंततः उन्हें झुकने पर मजबूर कर देता है। उत्तर प्रदेश सरकार (Yogi government) द्वारा प्राथमिक स्कूलों के जबरन मर्जर (school merger) की नीति पर लिया गया यू-टर्न इसी सच्चाई को उजागर करता है। बेसिक शिक्षा विभाग में चल रहे मर्जर अभियान के खिलाफ बीते कुछ महीनों में जो आवाज़ें उठीं— वे सिर्फ राजनीतिक विरोध नहीं थीं, बल्कि यह गांव-गांव के मासूम बच्चों, अभिभावकों और शिक्षकों की पीड़ा का प्रतिध्वनि थीं।

आखिरकार सरकार को स्वीकार करना पड़ा कि नीतियां यदि जमीनी हकीकत से मेल न खाएं तो वे सिर्फ कागज़ पर ही अच्छी लगती हैं। सरकार का ताज़ा फैसला, जिसमें कहा गया है कि एक किलोमीटर से अधिक दूरी वाले स्कूलों को मर्ज नहीं किया जाएगा और 50 से अधिक नामांकित छात्रों वाले स्कूल अब मर्जर से बाहर होंगे, दरअसल अपने पहले के फैसले की विफलता का मौन स्वीकार है।

यह भी ध्यान देने योग्य है कि शिक्षा मंत्री संदीप सिंह ने भले ही इसे “बच्चों की सुविधा, सुरक्षा और गुणवत्ता” से जोड़ा हो, पर हकीकत यही है कि लगातार हो रहे विरोध, अभिभावकों की चिंता, और शिक्षा छोड़ते बच्चों की संख्या ने सरकार को पुनर्विचार के लिए विवश कर दिया। राजनीतिक दलों और शिक्षक संगठनों ने भी इस नीति के खिलाफ मोर्चा खोल रखा था। समाजवादी पार्टी जैसे विपक्षी दलों ने इस फैसले को शिक्षा से वंचित तबके के खिलाफ साजिश बताया था, वहीं शिक्षकों ने इसे स्कूलों की आत्मा खत्म करने वाला फैसला करार दिया। ऐसे में सरकार का पीछे हटना यह भी दर्शाता है कि नीति निर्माण में सहभागी लोकतंत्र की कितनी अहम भूमिका होती है।

अब जब यह निर्णय आ चुका है, सवाल यह है कि क्या सरकार इस नीति को स्थायी रूप से समाप्त करने का साहस दिखाएगी, या फिर कुछ समय बाद “संशोधित मर्जर” के नाम पर वही प्रक्रिया दोहराई जाएगी?

शिक्षा किसी भी समाज की रीढ़ होती है। उसकी संरचना से खिलवाड़ या अव्यावहारिक प्रयोग न सिर्फ वर्तमान पीढ़ी को नुकसान पहुंचाते हैं, बल्कि भविष्य की नींव को भी कमजोर करते हैं। यदि स्कूल बच्चों से दूर होंगे, तो शिक्षा उनके जीवन से और दूर होती चली जाएगी। यह सुखद है कि सरकार ने जनविरोध को सुना, पर उससे भी अधिक ज़रूरी है कि आगे की नीतियां कागज़ी आंकड़ों पर नहीं, जमीनी अनुभवों और सामाजिक वास्तविकताओं पर आधारित हों। यही एक जिम्मेदार लोकतंत्र और संवेदनशील शासन की पहचान है।

शरद कटियार
ग्रुप एडिटर
यूथ इंडिया न्यूज ग्रुप

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