एक लाइसेंस से दर्जनों गाँवों में शराबखोरी – माफियाओं के आगे नतमस्तक प्रशासन
जलालाबाद (शाहजहांपुर)। जनपद के ग्रामीण क्षेत्रों में अवैध शराब का कारोबार बेलगाम होता जा रहा है। आबकारी विभाग की निष्क्रियता और हल्का पुलिस कर्मियों की सुस्ती के चलते शराब माफियाओं के हौसले इतने बुलंद हैं कि 18 मुकदमों में नामजद आरोपी दुमकापुर निवासी मोनू खुलेआम सड़क किनारे खोखे पर देशी व कच्ची शराब बेच रहा है। ग्रामीणों के अनुसार, उसके साथ उसका भाई भी इस धंधे में बराबर का साझेदार है।
स्थानीय ग्रामीणों का कहना है कि हल्के में तैनात सिपाही गांव में आते तो जरूर हैं, मगर इस अवैध कारोबार की ओर ध्यान नहीं देते। नतीजा यह है कि गाँव के कई स्थानों पर खोखों पर शराब बिक रही है और माफियाओं ने एक संगठित नेटवर्क बना लिया है। सवाल यह है कि जिस आरोपी के खिलाफ गैंगस्टर व गुंडा एक्ट की कार्यवाही कर उसे जिले से बाहर भेजा जाना चाहिए था, वह प्रशासन को ठेंगा दिखाकर खुलेआम अपना कारोबार कैसे चला रहा है?
अवैध रूप से बिक रही कच्ची शराब न केवल कानून की धज्जियां उड़ा रही है बल्कि लोगों की जान के लिए भी खतरा बन चुकी है। आए दिन जहरीली शराब से हादसों की खबरें सामने आती हैं, मगर प्रशासन की उदासीनता बनी रहती है। कम कीमत पर उपलब्ध होने के कारण गरीब मजदूर और युवा वर्ग इसका सेवन धड़ल्ले से कर रहे हैं। कई मौतों के बाद भी न तो आबकारी विभाग ने सख्ती दिखाई और न ही पुलिस ने ठोस कदम उठाए।
हालांकि आबकारी विभाग समय-समय पर अवैध शराब के खिलाफ अभियान चलाने का दावा करता है और कई मामलों में गुंडा एक्ट के तहत कार्यवाही भी करवाई है। मगर हकीकत यह है कि जलालाबाद क्षेत्र में पहुंचते ही यह अभियान दम तोड़ देता है। यहाँ खुलेआम बिक रही कच्ची शराब प्रशासन की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल खड़े करती है।
सूत्र बताते हैं कि दुमकापुर में बिक रही देशी शराब खाईखेड़ा और मदनापुर की सरकारी दुकानों से सप्लाई होकर आती है। माफियाओं ने सिर्फ एक लाइसेंस के नाम पर दर्जनों गाँवों में खोखों पर शराब रखवाकर बिक्री का बड़ा जाल फैला रखा है। इसका सीधा संकेत है कि यह अकेले एक गांव का खेल नहीं, बल्कि एक बड़े संगठित गिरोह का नेटवर्क है जिसमें स्थानीय पुलिस और आबकारी विभाग की मिलीभगत की बू साफ झलकती है।
जहाँ एक ओर सरकार नशामुक्त समाज की बात करती है, वहीं दूसरी ओर गाँवों में जहरीली और अवैध शराब की बिक्री आम हो चुकी है। गरीब और मजदूर वर्ग की जिंदगी दांव पर है, मगर प्रशासन के कानों पर जूं तक नहीं रेंग रही। अब देखना यह है कि कब और किस स्तर पर इस अवैध कारोबार पर लगाम कसने के लिए ठोस कार्यवाही की जाती है।