लखनऊ: ऑल इंडिया पावर इंजीनियर्स फेडरेशन (AIPEF) ने केंद्र और राज्य सरकारों से अपील की है कि किसानों और गरीब उपभोक्ताओं के हितों को ध्यान में रखते हुए बिजली (Electricity) क्षेत्र के निजीकरण की प्रक्रिया को तत्काल रोका जाए। शनिवार को लखनऊ में हुई फेडरल काउंसिल (Federal Council) की बैठक में यह संकल्प पारित किया गया।
फेडरेशन के चेयरमैन शैलेन्द्र दुबे ने कहा कि यदि उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र में निजीकरण की प्रक्रिया को तत्काल रद्द नहीं किया गया, तो देशभर के बिजली इंजीनियर और कर्मचारी सड़कों पर उतरकर आंदोलन करने के लिए विवश होंगे। उन्होंने उपभोक्ताओं से भी अपील की कि वे इस जनहित आंदोलन में बिजली कर्मचारियों का सहयोग करें।
फेडरेशन ने निजीकरण के पुराने अनुभवों का हवाला देते हुए बताया कि उड़ीसा में तीन बार निजीकरण असफल रहा। पहले अमेरिकी कंपनी AES और बाद में रिलायंस पॉवर भी उपभोक्ताओं को संतोषजनक सेवा देने में विफल रहीं। अंततः फरवरी 2015 में विद्युत नियामक आयोग को तीनों कंपनियों के लाइसेंस रद्द करने पड़े।
फेडरेशन ने महाराष्ट्र में ‘पैरेलल लाइसेंस’ के नाम पर चुनिंदा औद्योगिक क्षेत्रों में निजी कंपनियों को प्रवेश देने की नीति की तीखी आलोचना की। इसे ‘मुनाफे का निजीकरण’ बताते हुए उन्होंने कहा कि यह सार्वजनिक क्षेत्र की उपेक्षा और उपभोक्ताओं के हितों के साथ सीधा खिलवाड़ है।
फेडरेशन ने राजस्थान के कवई और झालावाड़ थर्मल पावर प्लांट्स को “ज्वॉइंट वेंचर” के नाम पर स्टेट सेक्टर से छीनने की योजना का भी जोरदार विरोध किया और इसे तुरंत रद्द करने की मांग की। फेडरल काउंसिल की इस महत्वपूर्ण बैठक में सेक्रेटरी जनरल पी. रत्नाकर राव, पैट्रन अशोक राव, पी.एन. सिंह, सत्यपाल, कार्तिकेय दुबे, और संजय ठाकुर समेत देश भर से वरिष्ठ पदाधिकारी उपस्थित रहे। AIPEF देश भर में बिजली इंजीनियरों और कर्मचारियों का सबसे बड़ा संगठन है, जो सार्वजनिक बिजली सेवाओं की सुरक्षा और उपभोक्ता अधिकारों की रक्षा के लिए सक्रिय भूमिका निभाता रहा है।