शरद कटियार
उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा स्मार्टफोन की जगह टैबलेट वितरित करने का प्रस्ताव एक दूरदर्शी निर्णय के रूप में देखा जाना चाहिए। हालिया रिपोर्टों के अनुसार, राज्य सरकार कैबिनेट के उस पुराने निर्णय को निरस्त करने की तैयारी में है, जिसमें 25 लाख स्मार्टफोन खरीदने की योजना बनाई गई थी। अब यह स्थान टैबलेट को दिया जाएगा, जिसे अधिक व्यावहारिक और शैक्षिक दृष्टिकोण से उपयोगी माना गया है।
शिक्षा के क्षेत्र में डिजिटल उपकरणों की भूमिका तेजी से बढ़ी है। विशेषकर कोरोना महामारी के बाद यह स्पष्ट हो गया कि ऑनलाइन शिक्षा अब केवल विकल्प नहीं, बल्कि आवश्यकता बन चुकी है। ऐसे में टैबलेट, जिनकी स्क्रीन बड़ी होती है और जिनमें एक साथ कई शैक्षिक एप्लिकेशन सहजता से चलाए जा सकते हैं, विद्यार्थियों के लिए कहीं अधिक उपयोगी साबित हो सकते हैं।
स्मार्टफोन मुख्यतः संवाद और मनोरंजन के उपकरण माने जाते हैं। जबकि टैबलेट को एक शैक्षणिक और उत्पादक उपकरण के रूप में विकसित किया गया है। यह निर्णय केवल तकनीकी परिवर्तन नहीं है, बल्कि युवाओं को गंभीरता से पढ़ाई और प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी के लिए प्रेरित करने की नीति का भी हिस्सा है।
उत्तर प्रदेश सरकार का यह कदम यह भी दर्शाता है कि सरकार अब डिजिटल इंडिया की मूल भावना को मात्र उपकरण वितरण तक सीमित नहीं रखना चाहती, बल्कि गुणवत्ता और उपयोगिता को प्राथमिकता दे रही है। अगर इस योजना को सही तरीके से लागू किया गया और टैबलेट में पूर्व-स्थापित शैक्षिक सामग्री, सरकारी पोर्टल्स और ई-लर्निंग एप्स को शामिल किया गया, तो यह ग्रामीण और वंचित तबके के युवाओं के लिए गेमचेंजर सिद्ध हो सकता है।
हालांकि, यह भी सुनिश्चित किया जाना आवश्यक है कि उपकरणों का वितरण पारदर्शिता और निष्पक्षता के साथ हो। साथ ही, छात्रों को यह सिखाना भी उतना ही आवश्यक है कि वे टैबलेट का सदुपयोग कैसे करें और इसे केवल मनोरंजन का माध्यम न बनने दें।
निश्चित रूप से, यदि इस बदलाव को सही नियोजन और निगरानी के साथ लागू किया गया, तो यह न केवल उत्तर प्रदेश के छात्रों को तकनीकी रूप से सशक्त बनाएगा, बल्कि राज्य को डिजिटल शिक्षा के क्षेत्र में राष्ट्रीय नेतृत्व की ओर भी अग्रसर करेगा।
