विजय गर्ग
हर माता-पिता की यह स्वाभाविक इच्छा होती है कि उनका बच्चा न केवल पढ़ाई में कुशल हो, बल्कि एक शिष्ट, ज़िम्मेदार और संवेदनशील नागरिक के रूप में भी पहचाना जाए। यह लक्ष्य केवल पढ़ाई या अनुशासन से नहीं, प्रारंभिक जीवन में मिले संस्कारों से पूरा होता है। बच्चों में अच्छा व्यवहार, भावनात्मक समझ और सामाजिक कौशल विकसित करना कोई एक दिन का काम नहीं है। यह एक निरंतर प्रक्रिया है, जिसमें माता-पिता की भूमिका केंद्रीय होती है। कुछ व्यावहारिक, संवेदनशील और असरदार उपायों से आप अपने बच्चों के अंदर ये बीज बो सकते हैं।
बर्ताव में गर्मजोशी
जब बच्चा स्कूल से लौटे या दिनभर की थकान के बाद आपसे मिलने आए, तो मुस्कान के साथ उससे मिलिए। उसे पुचकारिए, हाल पूछिए, यह छोटा-सा भाव उसे ये अहसास दिलाता है कि वह आपके लिए विशेष है ।
प्रभाव : इससे बच्चे में आत्मविश्वास और पारिवारिक जुड़ाव की भावना विकसित होती है।
स्वयं बनें उदाहरण
बच्चे वही सीखते हैं, जो वे अपने परिवेश में देखते हैं। यदि आप किसी ड्राइवर, सेल्समैन या घरेलू सहायक से सौम्यता और सम्मान से बात करेंगे, तो बच्चा भी वही रवैया अपनाएगा। सूत्र : दूसरों की मदद, विनम्र भाषा का प्रयोग और धैर्यशील व्यवहार ख़ुद भी अपनाएं।
बुजुर्गों से हो जुड़ाव
अगर घर में दादा-दादी या नाना-नानी हैं, तो बच्चों को उनके साथ समय बिताने के लिए प्रोत्साहित करें। उनकी कहानियां, अनुभव और जीवन-दृष्टि बच्चों को नैतिक मूल्यों से जोड़ती हैं।
लाभ : इससे बच्चे में पारिवारिक समर्पण, कृतज्ञता और संवेदनशीलता पनपती है।
सफ़र में हो संवाद
यदि आप बच्चों को स्कूल छोड़ने या लाने जाते हैं, तो यह समय केवल मोबाइल या म्यूज़िक तक सीमित न रखें। रास्ते दृश्य, पेड़-पौधे, जानवरों या समाज के विविध रंगों के बारे में उनसे बात करें।
महत्व : यह संवाद उनकी जिज्ञासा, सामान्य ज्ञान और अभिव्यक्ति की क्षमता को निखारने में मदद करता है। सुनाएं कुछ
रोचक
रोज़ाना कुछ समय निकालकर बच्चों को कहानी या कविताएं सुनाएं। सुनाने के बाद उन पर चर्चा करें, पूछें कि क्या समझा, क्या अच्छा लगा, क्या सीखा ?
परिणाम : इससे बच्चों में भाषा, कल्पना और नैतिक समझ का विकास होता है।
दिनचर्या की शिक्षा
बच्चों को शुरुआत से ही दिनचर्या का महत्व समझाएं। सोने, खाने, पढ़ने-लिखने, खेलने और स्क्रीन टाइम का संतुलित रुटीन बनाएं और उसे निभाने में उनका मार्गदर्शन करें। ध्यान दें : आप स्वयं भी रुटीन का पालन करें, क्योंकि बच्चे देखकर ही सीखते हैं ।
अपनाएं ये मूल मंत्र
आवाज़ ऊंची करना या बार-बार डांटना बच्चे पर उल्टा असर डाल सकता है। बातचीत के माध्यम से ही समझाएं। प्रार्थना या ईश्वर स्मरण को उसकी दिनचर्या का हिस्सा बनाएं, यह उसे मानसिक स्थिरता देगा । अपेक्षाएं यथार्थवादी रखें, एक ही दिन में बच्चा आदर्श व्यवहार नहीं सीख सकता। सार्वजनिक रूप से कभी उसका मज़ाक़ न बनाएं। ‘ट्यूबलाइट’, ‘मोटू’ आरोप तुल्य नाम धरने से बचें। या ‘भोंदू’ जैसे
… आप हैं सबसे असरदार
अच्छे संस्कार देने का अर्थ केवल अच्छी-अच्छी बातें बताना नहीं है। बातों के साथ ही जीवन की हर छोटी-बड़ी परिस्थिति में बच्चे के साथ रहकर, उसे समझाकर और उदाहरण प्रस्तुत कर पथ दिखाना है। अभिभावक ही बच्चे के पहले और सबसे प्रभावशाली शिक्षक होते हैं। प्यार, धैर्य और निरंतरता के साथ दी गई आपकी शिक्षा उसके बचपन को सुंदर तो बनाएगी ही, उसके भविष्य की नींव भी मज़बूत करेगी।
(विजय गर्ग सेवानिवृत्त प्रिंसिपल मलोट पंजाब)