फर्रुखाबाद। चारागाह की ज़मीन, जो गोवंश के लिए हरे चारे की सांस होती है, आज निजी लालच की आग में जल रही है! फर्रुखाबाद जिले के बढ़पुर ब्लॉक की ग्राम पंचायत जनैया सैठया से एक चौंकाने वाला मामला सामने आया है, जहां ग्रामीणों ने ग्राम प्रधान ज्ञानेंद्र सिंह राजपूत पर गोचर भूमि पर कब्जा कर निजी खेती करने और भूसा बेचने का सनसनीखेज आरोप लगाया है। आरोप है कि गौशाला के नाम पर सिर्फ कागजी खाना-पूरी हो रही है, जबकि गोवंश भूख से तड़प रहा है।
ग्रामीणों का आरोप है कि 98 बीघा की चारागाह जमीन, जो गोवंश की भूख मिटाने के लिए सुरक्षित होनी चाहिए, वहां गेंहूं की फसल बोकर भूसा बाजार में बेच दिया गया। यही नहीं, वर्तमान में 7 बीघा में खड़ा हरा चारा भी निजी हितों की भेंट चढ़ने की आशंका से घिरा है।
प्रधान ने खुद माना कि जमीन पर एक गांव – नगला देवतन – बसा है, जिसमें दो तालाब, 5 बीघा बाग और 25 बीघा खाली ज़मीन है। उनका दावा है कि 12 बीघा में चारा बोया गया और गेहूं गौशाला उपयोग के लिए था।
लेकिन सवाल ये उठता है कि – तो भूसे की बिक्री क्यों हुई?
गौशाला की हालत इतनी दयनीय क्यों है?ग्रामीणों ने बताया कि गौशाला की देखरेख नगण्य है। भूख से जूझते गोवंश और टूटे-फूटे बाड़े ग्राम प्रधान के ‘कागजी चारे’ की सच्चाई बयान कर रहे हैं।
“गौशाला सिर्फ सरकारी फाइलों में जिंदा है, असल में तो वहां जानवर तड़प रहे हैं” – एक स्थानीय निवासी
जब यूथ इंडिया ने खंड विकास अधिकारी अमरेश चौहान से सवाल किया, तो उन्होंने साफ कहा कि मामला अब उनके संज्ञान में आ चुका है और जांच के आदेश दे दिए गए हैं।
“गौशाला और चारागाह की ज़मीन में लापरवाही बर्दाश्त नहीं होगी, दोषियों पर सख्त कार्रवाई तय है” –बी डीओ, अमरेश चौहान
गांव में गुस्सा चरम पर है। लोग मांग कर रहे है कि इस पूरे प्रकरण ने प्रशासनिक निष्क्रियता और ग्राम स्तर पर चल रहे भ्रष्टाचार की पोल खोल दी है। अब निगाहें इस पर टिकी हैं कि जांच कितनी पारदर्शी होती है और क्या कोई बड़ी कार्रवाई होती है या नहीं।