- इमाम हुसैन की कुर्बानी को किया याद, छुरियों से किया मातम, कहा – हुसैन की राह इंसानियत की राह है
लखनऊ। धर्म और संप्रदाय की सीमाओं से ऊपर उठकर इंसानियत और एकता का अद्भुत उदाहरण उस समय देखने को मिला, जब हिंदू धर्मगुरु स्वामी सारंग ने मोहर्रम के 10वीं तारीख को आयोजित ताज़िए के जुलूस में शामिल होकर न केवल शिरकत की, बल्कि छुरियों से मातम भी किया। यह दृश्य न केवल चौंकाने वाला था, बल्कि समाज के लिए एक गहरा संदेश भी लेकर आया – धर्म अलग हो सकते हैं, लेकिन भावनाएं और इंसानियत एक होती है।
स्वामी सारंग ने मोहर्रम के इस मौके पर इमाम हुसैन की कुर्बानी को याद करते हुए कहा,
“हुसैन की राह इंसानियत, बलिदान और सत्य के लिए खड़े होने की राह है। यह मातम उस पीड़ा की अभिव्यक्ति है, जो अधर्म और अन्याय के खिलाफ लड़ी गई थी।”
जुलूस में उनकी उपस्थिति और सक्रिय भागीदारी को देखकर शिया समुदाय के लोगों ने उनका गर्मजोशी से स्वागत किया। यह दृश्य सामाजिक सौहार्द की मिसाल बन गया। स्वामी सारंग ने कहा कि भारत की ताकत इसकी विविधता में है, और सभी धर्मों का मूल उद्देश्य प्रेम, करुणा और सेवा है।
स्वामी सारंग की इस पहल ने सोशल मीडिया और स्थानीय समुदाय में भी सकारात्मक प्रतिक्रिया उत्पन्न की है। लोगों का मानना है कि ऐसे कदम न केवल सामाजिक विभाजन को मिटाते हैं, बल्कि धार्मिक कट्टरता के विरुद्ध एक मजबूत संदेश भी देते हैं।
विशेषज्ञों का मानना है कि जब धर्मगुरु स्वयं एकता और भाईचारे की मिसाल पेश करते हैं, तो उनका प्रभाव आम जनमानस पर गहरा पड़ता है। स्वामी सारंग का यह कदम इसी दिशा में एक प्रभावशाली प्रयास माना जा रहा है।