प्रशांत कटियार
डॉ. सोनेलाल पटेल, जिनका जन्म 2 जुलाई 1950 को उत्तर प्रदेश के कन्नौज जिले के बगुलीहाई गांव में हुआ था, पिछड़े वर्गों के लिए सामाजिक न्याय की राजनीति के एक मजबूत स्तंभ माने जाते हैं। एक साधारण कुर्मी किसान परिवार में जन्मे सोनेलाल पटेल ने शिक्षा के क्षेत्र में गहरी रुचि दिखाते हुए पंडित पृथ्वी नाथ डिग्री कॉलेज, कानपुर से एमएससी और कानपुर विश्वविद्यालय से भौतिकी में पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। लेकिन उनका असली झुकाव सामाजिक और राजनीतिक परिवर्तन की दिशा में था, जिसने उन्हें देश की सामाजिक न्याय की राजनीति में एक प्रमुख चेहरे के रूप में स्थापित कर दिया। राजनीतिक जीवन की शुरुआत उन्होंने चौधरी चरण सिंह के साथ की, लेकिन जल्द ही वे बहुजन आंदोलन के पुरोधा कांशीराम के करीबी सहयोगी बन गए।
डॉ. पटेल न केवल बहुजन समाज पार्टी के संस्थापक सदस्यों में से एक थे, बल्कि उन्होंने उत्तर प्रदेश और बिहार में पार्टी के विस्तार और पिछड़े समाज के राजनीतिक उत्थान में अभूतपूर्व योगदान दिया। लेकिन जब कांशीराम ने पार्टी की कमान मायावती को सौंपी और कई वरिष्ठ नेताओं की उपेक्षा शुरू हुई, तब डॉ. पटेल ने पार्टी से अलग होकर अपनी नई राजनीतिक राह चुनी। 4 नवंबर 1995 को उन्होंने ‘अपना दल’ की स्थापना की, जो बाद में उत्तर प्रदेश की पिछड़ी जातियों की सबसे मुखर राजनीतिक आवाज बनी।अपना दल के माध्यम से उन्होंने जिसकी जितनी संख्या भारी, उसकी उतनी हिस्सेदारी जैसे नारों को जन-जन तक पहुँचाया। उनका उद्देश्य था कि समाज के वंचित तबकों को केवल वोट बैंक न समझा जाए, बल्कि सत्ता की भागीदारी में उन्हें बराबरी का अधिकार मिले। 2009 में उन्होंने फूलपुर लोकसभा सीट से चुनाव लड़ा, लेकिन इसी वर्ष 18 अक्टूबर को एक रहस्यमय सड़क दुर्घटना में उनका निधन हो गया। कई लोगों का आज भी मानना है कि यह दुर्घटना नहीं बल्कि साजिश थी। उनकी बेटी अनुप्रिया पटेल ने इस मामले की सीबीआई जांच की मांग की थी, लेकिन यह गुत्थी आज भी अनसुलझी है। डॉ. पटेल के निधन के बाद उनकी राजनीतिक विरासत परिवार के भीतर ही बंट गई। उनकी पत्नी कृष्णा पटेल और बड़ी बेटी पल्लवी पटेल ने ‘अपना दल (कमेरावादी)’ नाम से अलग गुट बनाया, जबकि छोटी बेटी अनुप्रिया पटेल ने ‘अपना दल (एस)’ का नेतृत्व किया। अनुप्रिया पटेल लगातार तीसरी बार मिर्जापुर से सांसद हैं और वर्तमान में केंद्र सरकार में स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण राज्य मंत्री हैं। उनके पति आशीष पटेल उत्तर प्रदेश सरकार में कैबिनेट मंत्री हैं। दूसरी ओर, पल्लवी पटेल ने समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन कर 2022 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य को सिराथू से हराकर बड़ा राजनीतिक संदेश दिया।
उनका गुट समाजवादी विचारधारा के साथ खड़ा है।वर्तमान में उत्तर प्रदेश में ‘अपना दल (एस)’ को चुनाव आयोग से राज्य स्तरीय पार्टी का दर्जा मिल चुका है। 2022 के विधानसभा चुनाव में इस पार्टी ने भाजपा के साथ मिलकर 17 सीटों पर चुनाव लड़ा और 12 सीटों पर विजय हासिल की थी, जबकि 2024 के लोकसभा चुनाव में गठबंधन में रहकर 2 मे 1 सीट पर सफलता पाई। वहीं ‘अपना दल (के)’ ने अब विपक्षी दलों के साथ अपनी जगह बनाई है और सामाजिक न्याय के मुद्दों को नए सिरे से उठाने का दावा कर रहा है।
डॉ. सोनेलाल पटेल की जयंती पर यह सवाल उठता है कि क्या उनके परिवार के दोनों गुट वाकई उनके विचारों को आगे बढ़ा रहे हैं, या फिर यह सिर्फ सत्ता और पहचान की लड़ाई बनकर रह गई है? वे जाति, वर्ग और क्षेत्र के भेदभाव के खिलाफ थे। उनका उद्देश्य सत्ता में पिछड़ों की सहभागिता सुनिश्चित करना था, लेकिन आज उनके नाम पर दो गुटों में विभाजित उनकी पार्टी आपसी संघर्ष और बयानबाज़ी का केंद्र बनी हुई है।
उनकी असल विरासत न तो किसी गुट के पास है, न ही किसी कुर्सी के साथ जुड़ी है, बल्कि वह उनके विचारों, सिद्धांतों और संघर्षशील सोच में है। यदि आज उनका परिवार और समर्थक वर्ग वाकई उन्हें श्रद्धांजलि देना चाहता है, तो ज़रूरत इस बात की है कि वे विचारों की राजनीति करें, सत्ता के लिए नहीं बल्कि समाज में समानता लाने के लिए लड़ें। उनके बताए मार्ग पर चलें जहां राजनीति का मतलब सेवा, सशक्तिकरण और समरसता हो। डॉ. पटेल की 75वीं जयंती पर देश उन्हें श्रद्धांजलि दे रहा है, लेकिन सबसे बड़ी श्रद्धांजलि तब होगी जब उनके सपनों का समाज सामाजिक समानता, राजनीतिक भागीदारी और न्याय आधारित व्यवस्था वास्तव में साकार हो। यही उनके प्रति सच्चा सम्मान होगा।
प्रशांत कटियार