शरद कटियार
उत्तर प्रदेश सरकार ने इलेक्ट्रिक वाहनों (ईवी) के क्षेत्र में जो साहसिक और दूरदर्शी निर्णय लिया है, वह न केवल राज्य को भारत के ईवी मानचित्र पर अग्रणी बना रहा है, बल्कि पूरे देश के लिए एक अनुकरणीय मॉडल भी प्रस्तुत कर रहा है। चार्जिंग स्टेशनों की अपस्ट्रीम इंफ्रास्ट्रक्चर लागत को अब सब्सिडी ढांचे में शामिल करने का जो निर्णय लिया गया है, वह ईवी नीति में एक युगांतरकारी सुधार के रूप में देखा जाना चाहिए।
अब तक भारत में किसी भी राज्य ने इस दिशा में पहल नहीं की थी। चार्ज पॉइंट ऑपरेटरों को न्यूनतम पूंजी निवेश की शर्तों के चलते सब्सिडी से वंचित रहना पड़ता था। परंतु अब उत्तर प्रदेश ने इस चुनौती को भलीभांति पहचाना और नीति में बदलाव कर ऑपरेटरों को उस हिस्से की लागत पर भी 20% तक की सब्सिडी देने की व्यवस्था की है, जिसे अपस्ट्रीम इंफ्रास्ट्रक्चर कहा जाता है—जैसे कि बिजली मीटर तक की लाइन, ट्रांसफार्मर, वोल्टेज उपकरण, और अन्य बुनियादी सुविधाएँ। यह बदलाव निजी निवेशकों के लिए प्रेरणास्रोत बनेगा और चार्जिंग स्टेशनों की संख्या में तेजी से वृद्धि होगी।
इन्वेस्ट यूपी को इस नीति के कार्यान्वयन की जिम्मेदारी देकर सरकार ने यह भी स्पष्ट कर दिया है कि यह केवल नीति पत्र नहीं, बल्कि जमीनी स्तर पर परिवर्तन लाने वाला कदम है। अनुमान है कि यह निर्णय ईवी अपनाने की गति को काफी बढ़ावा देगा और चार्जिंग इंफ्रास्ट्रक्चर के विकास को एक नई दिशा देगा।
उत्तर प्रदेश में पहले ही 12 लाख से अधिक इलेक्ट्रिक वाहन पंजीकृत हो चुके हैं। लेकिन चार्जिंग स्टेशनों की कमी एक बड़ी चुनौती बनी हुई थी। अब जबकि 450 से अधिक चार्जिंग स्टेशनों को GIS डैशबोर्ड से जोड़ा जा रहा है और 740 ईवी बसें प्रमुख मार्गों पर चल रही हैं, यह उम्मीद करना उचित है कि आने वाले वर्षों में राज्य का हर नागरिक ईवी की ओर आत्मविश्वास से कदम बढ़ाएगा।
सबसे बड़ी बात यह है कि यह निर्णय पर्यावरणीय संतुलन और ऊर्जा आत्मनिर्भरता की दिशा में भी मील का पत्थर है। ग्रीन रूट्स पर ईवी बसों का संचालन न केवल प्रदूषण नियंत्रण में सहायक होगा, बल्कि प्रदेश के सार्वजनिक परिवहन को भी अधिक टिकाऊ और सुलभ बनाएगा।
यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि उत्तर प्रदेश सरकार ने अपने ईवी निर्माण एवं गतिशीलता नीति-2022 में यह संशोधन कर एक नई क्रांति का शंखनाद किया है। अब यह ज़रूरी है कि अन्य राज्य भी इस पहल से प्रेरणा लें और देशभर में ईवी पारिस्थितिकी तंत्र को मजबूत बनाने की दिशा में ठोस कदम उठाएं।
उत्तर प्रदेश ने यह साबित कर दिया है कि यदि नीति में दूरदृष्टि और क्रियान्वयन में प्रतिबद्धता हो, तो तकनीकी और पर्यावरणीय बदलाव भी व्यावसायिक व्यवहार्यता के साथ संभव हैं। यह निर्णय न केवल उद्योग जगत के लिए, बल्कि आम जनता के लिए भी एक सकारात्मक संकेत है—भविष्य इलेक्ट्रिक है, और उत्तर प्रदेश उसका अग्रदूत बनने को तैयार है।