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Monday, November 10, 2025

अखिलेश यादव का PDA मॉडल बना भाजपा के लिए नई चुनौती!

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– पिछड़े, दलित और अल्पसंख्यक वोटों को साधने की सपा की रणनीति से उत्तर प्रदेश की सियासत में हलचल तेज

लखनऊ। उत्तर प्रदेश की राजनीति एक नए मोड़ पर है। समाजवादी पार्टी (सपा) के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने ‘PDA मॉडल’ के ज़रिए भाजपा के मजबूत जनाधार को सीधी चुनौती देने की तैयारी कर ली है। PDA यानी पिछड़ा, दलित और अल्पसंख्यक वर्ग—इन तीन सामाजिक समूहों को एक साथ लाकर सपा नया सामाजिक गठजोड़ बनाने की दिशा में काम कर रही है। यह मॉडल यूपी की राजनीति में समीकरण बदलने का संकेत दे रहा है।

अखिलेश यादव ने PDA मॉडल को सामाजिक न्याय का नया फ्रेमवर्क बताया है। उनका कहना है कि जब तक देश में जातिगत जनगणना नहीं होती, तब तक सामाजिक हिस्सेदारी और राजनीतिक भागीदारी का संतुलन नहीं बन सकता।

“जिसकी जितनी संख्या भारी, उसकी उतनी भागीदारी” – यही PDA की मूल भावना है। मैदान में उतरे PDA कार्यकर्ता

सपा अब PDA अभियान को जनांदोलन में बदलने की कोशिश में है:

छात्र नौजवान PDA जागरूकता अभियान के तहत युवा वर्ग को जोड़ने का अभियान चल रहा है।
प्रबुद्ध वर्ग सम्मेलन, बूथ कार्यकर्ता सम्मेलन और PDA मंडल संवाद जैसे कार्यक्रमों से सपा ने जमीनी पकड़ मजबूत करनी शुरू कर दी है।
शिक्षा, रोजगार, पेपर लीक और पुलिस भर्ती जैसे मुद्दों को लेकर युवाओं के बीच सपा की लोकप्रियता बढ़ रही है।

भाजपा पर क्या पड़ेगा असर?

राजनीतिक विश्लेषकों के मुताबिक PDA मॉडल भाजपा के पारंपरिक वोट बैंक में सेंध लगा सकता है:
OBC वर्ग में गैर-यादव जातियों जैसे कुर्मी, मौर्य, निषाद, लोध, कश्यप आदि को सपा PDA से जोड़ने में लगी है।
दलित वर्ग, जो पहले बसपा के साथ था, अब मायावती की निष्क्रियता के चलते विकल्प तलाश रहा है।
मुस्लिम मतदाता, जो पहले ही सपा के साथ थे, अब और संगठित होकर PDA को ताकत दे सकते हैं।

जनमत का गणित

वर्ग अनुमानित जनसंख्या PDA का संभावित लाभ भाजपा को संभावित नुक़सान

पिछड़ा वर्ग 42% ✔️ प्रमुख आधार ⚠️ वोट बँट सकते हैं
दलित वर्ग 21% ✔️ कुछ लाभ ⚠️ BSP कमजोर तो खतरा
मुस्लिम वर्ग 19% ✔️ पूरी ताकत ❌ पहले ही समर्थन नहीं
सवर्ण वर्ग 18% ❌ सीमित प्रभाव ✔️ भाजपा का कोर वोट।

भाजपा भी PDA के जवाब में अपनी रणनीति तेज कर रही है:

मोदी सरकार की योजनाओं को अंतिम व्यक्ति तक पहुंचाकर लाभार्थी वर्ग को साधने की कोशिश जारी है।
OBC और दलित नेताओं को आगे लाकर भाजपा प्रतिक्रिया की राजनीति से बचना चाहती है।
सामाजिक समरसता संवाद, संविधानिक जनसंवाद जैसे कार्यक्रम शुरू किए जा चुके हैं।

उत्तर प्रदेश में राजनीतिक ध्रुवीकरण की नई पटकथा लिखी जा रही है। अखिलेश यादव का PDA मॉडल अगर जमीनी स्तर पर जनसमर्थन जुटाने में सफल रहा, तो 2027 का विधानसभा चुनाव भाजपा के लिए आसान नहीं रहेगा।
वहीं, भाजपा इस चुनौती को “समावेशी विकास बनाम जातीय ध्रुवीकरण” के रूप में प्रस्तुत कर सकती है।

आगामी चुनावों में यह टकराव विकास और भागीदारी के दो नए विमर्शों के रूप में सामने आ सकता है—और यही उत्तर प्रदेश की राजनीति की अगली बड़ी कहानी होगी।

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