✍🏻 प्रशांत कटियार
लखनऊ: उत्तर प्रदेश सरकार के हालिया फैसले ने प्रदेश की शिक्षा व्यवस्था (education system) की गंभीरता पर बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है।यह नियुक्ति अंतरराष्ट्रीय पदक विजेता डायरेक्ट रिक्रूटमेंट नियमावली 2022 के तहत की जा रही है। शिक्षा निदेशालय ने इस संबंध में पत्र जारी कर दिया है अंतरराष्ट्रीय क्रिकेटर रिंकू सिंह (rinku singh) को जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी (BSA) जैसे उच्च और नीतिगत पद पर नियुक्त करने का निर्णय केवल खेल प्रतिभा को सम्मान देने की भावना से प्रेरित नहीं लगता, बल्कि यह एक राजनीतिक लाभ और लोकप्रियता की होड़ का परिणाम अधिक प्रतीत होता है।
रिंकू सिंह निस्संदेह एक बेहतरीन क्रिकेटर हैं। सीमित संसाधनों से निकलकर उन्होंने देश और उत्तर प्रदेश का नाम अंतरराष्ट्रीय स्तर पर रोशन किया है। मगर यहीं से सवाल शुरू होता है क्या क्रिकेट के मैदान पर चमकने वाला हर सितारा शिक्षा और प्रशासनिक व्यवस्था का नेतृत्व कर सकता है? रिंकू सिंह ने खुद कक्षा 9 तक की भी पढ़ाई पूरी नहीं की, ऐसे में उन्हें एक ऐसे पद पर नियुक्त करना, जो प्रशासनिक दक्षता, नीति निर्माण, शिक्षकीय समझ और ज़िम्मेदारी से जुड़ा है, व्यवस्था के साथ क्रूर मज़ाक है।बीएसए का कार्य महज़ औपचारिक नहीं है।
यह पद जिले के प्राथमिक और उच्च प्राथमिक स्कूलों की शिक्षा नीतियों को लागू करता है।शिक्षकों की भर्ती, प्रशिक्षण और मूल्यांकन जैसे अहम दायित्व संभालता है।शिक्षा की गुणवत्ता, बजट प्रबंधन और विद्यालयों के निरीक्षण की जिम्मेदारी निभाता है।UPPSC के माध्यम से चयनित ग्रुप A राजपत्रित अधिकारियों को यह पद मिलता है।क्या एक 9वीं फेल व्यक्ति, जिसने न शिक्षक प्रशिक्षण प्राप्त किया, न प्रशासनिक सेवा की कोई योग्यता रखी, वह इतने व्यापक दायित्वों को संभाल सकता है?
यह निर्णय उन लाखों युवाओं के आत्मविश्वास को चोट पहुंचाता है, जो सालों तक दिन रात UPSC, UPPSC जैसी प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करते हैं। क्या अब योग्यता की जगह सिर्फ लोकप्रियता या सोशल मीडिया की चर्चा ही नौकरी पाने का नया मापदंड बन चुकी है?यदि सरकार वास्तव में रिंकू सिंह को सम्मान देना चाहती थी, तो उन्हें खेल विभाग में सलाहकार, ब्रांड एम्बेसडर या युवा प्रेरक की भूमिका दी जा सकती थी। इससे न केवल उनकी प्रेरक कहानी और योगदान को मंच मिलता, बल्कि प्रशासनिक संतुलन भी बना रहता।
यह भी ध्यान देने योग्य है कि हाल ही में रिंकू सिंह की सगाई मछलीशहर (जौनपुर) की नव-निर्वाचित समाजवादी पार्टी सांसद एडवोकेट प्रिया सरोज से हुई है। यह सगाई प्रदेशभर में चर्चा का विषय बनी। सियासी हलकों में इसे बीजेपी द्वारा काउंटर पॉलिटिक्स के रूप में देखा जा रहा है सपा सांसद से सगाई के बाद रिंकू सिंह को बीएसए बना देना इस नियुक्ति को और अधिक राजनीतिक रंग देता है।
ऐसा लगता है कि सरकार ने जन-चर्चा की लहर को भुनाने के लिए शिक्षा व्यवस्था को दांव पर लगा दिया।शिक्षा विभाग कोई क्रिकेट ग्राउंड नहीं है, जहां हर बॉल पर छक्का लगाने की आज़ादी हो। यहां नीति, अनुशासन, दूरदर्शिता और शैक्षणिक दृष्टिकोण की आवश्यकता होती है। न्यूनतम शैक्षणिक योग्यता की अनदेखी करके किसी को नेतृत्व सौंपना, भविष्य की पीढ़ियों के साथ विश्वासघात जैसा है।
यह निर्णय केवल नियमों की अनदेखी नहीं है, बल्कि यह प्रशासनिक और शैक्षणिक ढांचे में राजनीतिक हस्तक्षेप की खतरनाक शुरुआत है। यदि यही रुझान रहा, तो जल्द ही जनता यह सवाल पूछेगी कि क्या अब आईएएस और आईपीएस अधिकारी भी लोकप्रियता के आधार पर बनाए जाएंगे?
रिंकू सिंह को सम्मान अवश्य मिलना चाहिए, लेकिन उस कीमत पर नहीं कि देश की शिक्षा व्यवस्था मज़ाक बन जाए। सरकार को इस पर पुनर्विचार करना चाहिए और शिक्षा विभाग को योग्य और प्रशिक्षित नेतृत्व देना चाहिए, ना कि किसी के कंधे पर लोकप्रियता का बोझ लादकर पूरी प्रणाली को अस्थिर करना चाहिए।