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Tuesday, June 17, 2025

आंखों में आंसू, दिल में दर्द : कब सुनेगा शासन शिक्षामित्रों की सिसकियाँ?

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शरद कटियार

जून की तपती दोपहर। ज़मीन से उठती गर्मी (Heat), सिर पर आग उगलता सूरज और सैकड़ों चेहरे जिन पर पसीने के साथ बहते हैं आंसू (Tears)। ये कोई आम प्रदर्शनकारी नहीं, बल्कि उत्तर प्रदेश के शिक्षामित्र हैं — वही शिक्षक (Teacher) जिन्होंने गांव-गांव जाकर नौनिहालों को अक्षरज्ञान दिया, और आज अपने ही हक की भीख मांग रहे हैं। जब एक शिक्षामित्र की आंख से आंसू गिरते हुए पूछा गया – “क्या हमें कभी सुना जाएगा?” – तो ऐसा लगा जैसे वक्त थम गया हो। 17 दिन से तपती धूप में बिना किसी ठोस आश्वासन के धरने पर बैठे ये शिक्षक केवल अपने अधिकार की पुकार कर रहे हैं।

यहां बताना जरूरी यह भी है कि 2017 से शिक्षामित्रों के मानदेय मे कोई इजाफा नहीं किया। TET वाले शिक्षामित्रों को भी योग्य बनने का अवसर, फिर स्थायी नियुक्ति का रास्ता खोला जाए। मानदेय 12 महीने तक मिले – क्योंकि जिम्मेदारियां सिर्फ शैक्षणिक सत्र में नहीं आतीं। स्वास्थ्य सेवाएं, आकस्मिक अवकाश और कर्मचारी जैसी सुविधाएं – जो हर सरकारी सेवक का हक हैं।महिला शिक्षामित्रों को अंतरजनपदीय तबादले की सुविधा – ताकि वे शिक्षक और परिवार दोनों भूमिकाएं निभा सकें।

आज जब देश नई शिक्षा नीति और डिजिटल इंडिया की बात करता है, तब शिक्षामित्रों की ये हालत उस बुलंद इमारत की नींव की दरार जैसी लगती है। क्या जो दशकों तक शिक्षा की मशाल थामे रहे, वे अब तिरस्कार के लायक हैं? उत्तराखंड, हिमाचल जैसे राज्यों ने TET-CTET पास शिक्षामित्रों को स्थायीत्व दे दिया है। तो उत्तर प्रदेश क्यों पीछे है? क्या हमारी सरकार की प्राथमिकता में शिक्षक नहीं आते?

Teacher
Teacher

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ प्रदेश के मुखिया हैं। शिक्षामित्र जब कहते हैं –”अगर उनसे नहीं मांगेंगे, तो किससे?” –तो यह कोई याचना नहीं, बल्कि विश्वास है कि शायद वे सुनेंगे। शायद वे समझेंगे कि ये शिक्षक सिर्फ प्रदर्शनकारी नहीं, समाज के निर्माता है। ककहरा सिखाने वाले आज अपने ही हक की वर्णमाला भूलने को मजबूर हैं। यह शर्मनाक है।

सरकार को अब संवाद की पहल करनी चाहिए। समाधान निकालना ही होगा। क्योंकि अगर शिक्षक ही टूट गए, तो आने वाली पीढ़ियों की नींव दरक जाएगी। अब भी समय है — उम्मीदें बचाई जा सकती हैं। इन आंखों में जो सपने हैं, उन्हें धूप में झुलसने मत दीजिए। क्योंकि जब कोई शिक्षक रोता है, तो किताबें चुप हो जाती हैं। और जब किताबें चुप हो जाती हैं — समाज बोलना भूल जाता है।

शरद कटियार

प्रधान संपादक, दैनिक यूथ इंडिया

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