शरद कटियार
13 जून 2025 की सुबह जब भारत (India) जागा, तो मीडिया चैनलों पर ब्रेकिंग न्यूज़ की पट्टियों में एक ही खबर दौड़ रही थी – “एयर इंडिया (air india) का विमान (plane) टेकऑफ के दौरान हादसे का शिकार, 242 लोग सवार थे। राहत-बचाव कार्य जारी है।” यह हादसा केवल एक तकनीकी त्रुटि या दुर्घटनावश घटा मामला नहीं है।
यह आधुनिक तकनीक, प्रशासनिक ढांचे, हवाई सुरक्षा व्यवस्था और आपातकालीन प्रबंधन की सामूहिक असफलता का जीवंत उदाहरण है। यह घटना न केवल मृतकों और घायलों के परिजनों के लिए एक व्यक्तिगत त्रासदी है, बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर सवाल उठाने वाली एक चेतावनी भी है कि क्या हम वास्तव में सुरक्षित हैं?
प्राप्त रिपोर्टों के अनुसार, यह विमान लंदन के लिए रवाना हो रहा था, जब टेकऑफ के कुछ ही क्षणों में आग की चपेट में आ गया। विमान में 230 यात्री और 12 क्रू सदस्य सवार थे। अग्निशमन टीमों और आपदा प्रबंधन बल ने तत्काल मोर्चा संभाला, लेकिन आग की तीव्रता और विस्फोट के कारण कई लोगों की मौके पर ही मृत्यु हो गई।
इस हादसे ने 1996 में हुए छर्खी-दादरी एयर मिड-एयर कोलिजन, 2010 की मंगलौर एयर इंडिया एक्सप्रेस त्रासदी, और काठमांडू में नेपाल एयरलाइंस के विमान हादसे की भयावह यादें ताजा कर दीं। आज भारत सहित दुनिया भर में विमानन क्षेत्र को सुरक्षित और भरोसेमंद यात्रा साधन माना जाता है। फिर भी जब एक विमान टेकऑफ के दौरान ही चिंगारियों से भर जाए, तो यह स्पष्ट कर देता है कि सुरक्षा मानकों में कहीं न कहीं गंभीर चूक हो रही है।
कुछ संभावित बिंदु जो इस हादसे की पृष्ठभूमि में हो सकते हैं:
तकनीकी खराबी: क्या विमान की पूर्व उड़ानों में कोई चेतावनी संकेत मिले थे?
प्रशिक्षण की कमी: क्या पायलट और चालक दल को पर्याप्त आपातकालीन अभ्यास कराया गया था?
मैकेनिकल निगरानी में चूक: क्या रनवे पर निगरानी प्रणाली सही स्थिति में थी?निगरानी एजेंसियों की निष्क्रियता: डीजीसीए (DGCA) और एयरलाइंस के भीतर सुरक्षा निरीक्षणों में क्या लापरवाही हुई?
इस हादसे में जो लोग मारे गए, वे केवल आंकड़े नहीं हैं – वे किसी के बेटे-बेटी, किसी के माता-पिता, किसी के जीवनसाथी थे। वे लोग जो या तो रोजगार के लिए, शिक्षा के लिए, या परिवार से मिलने विदेश जा रहे थे। एक क्षण में सब कुछ खत्म हो गया। सरकार की ओर से मृतकों के परिजनों को मुआवजे की घोषणा कर दी गई है। लेकिन क्या मुआवज़ा इस अपूरणीय क्षति की भरपाई कर सकता है? शायद नहीं।
इस हादसे ने एक बार फिर यह प्रश्न खड़ा किया है कि क्या भारत में आपदा प्रबंधन केवल कागज़ों और बजट के आंकड़ों तक सीमित है? एयर इंडिया, जो अब टाटा समूह के अधीन है, वर्षों की बदनाम सरकारी छवि को सुधारने की कोशिश में लगी थी। ब्रांड को फिर से खड़ा करने के लिए बड़े निवेश, नए विमानों का अधिग्रहण, और बेहतर ग्राहक सेवा पर बल दिया जा रहा था। लेकिन इस हादसे ने एयर इंडिया की ब्रांड छवि को गहरा धक्का पहुंचाया है। अगर तकनीकी जांच में यह साबित होता है कि विमान में पहले से कोई खामी मौजूद थी, तो एयर इंडिया को न केवल कानूनी बल्कि नैतिक जिम्मेदारी भी निभानी होगी।
टीवी चैनलों और डिजिटल मीडिया ने हादसे को लाइव कवरेज दिया। लेकिन कई चैनलों की रिपोर्टिंग में देखा गया कि रिपोर्टर पीड़ित परिवारों से संवेदना के बजाय सनसनी की तलाश में प्रश्न पूछते नजर आए – “कैसा महसूस कर रहे हैं?” या “आखिरी बार आपने कब बात की थी?”
ऐसी पत्रकारिता न केवल पीड़ितों का अपमान है, बल्कि मीडिया की नैतिक जिम्मेदारी से भी विपरीत है। दुख की घड़ी में समाज को संयम और समझ की आवश्यकता होती है, न कि टीआरपी की भूख से भरी बेतुकी रिपोर्टिंग। यह हादसा केवल एक घरेलू त्रासदी नहीं है। यह अंतरराष्ट्रीय मीडिया में भी सुर्खियों में रहा। कई विदेशी यात्री भी विमान में सवार थे। इससे भारत की विमानन सुरक्षा और व्यवस्था पर वैश्विक सवाल उठ सकते हैं।
अगर लगातार इस तरह की घटनाएं होती रहीं, तो भारत में विदेशी निवेशक, पर्यटक और व्यावसायिक प्रतिनिधि हवाई यात्रा को लेकर आशंकित हो सकते हैं, जिससे देश की वैश्विक छवि को गहरा नुकसान पहुंचेगा। प्रधानमंत्री कार्यालय, नागरिक उड्डयन मंत्रालय और रक्षा मंत्रालय ने संयुक्त रूप से त्वरित कार्रवाई का निर्देश दिया। एनडीआरएफ, एयरफोर्स और फायर ब्रिगेड की टीमें मौके पर पहुंचीं।
मृतकों के परिजनों को 25 लाख रुपये और घायलों को 5 लाख रुपये की आर्थिक सहायता देने की घोषणा की गई। लेकिन असली सवाल है – क्या यह प्रतिक्रिया केवल दिखावे की है या इससे भविष्य में ऐसे हादसों को रोकने की रणनीति बनेगी? अब आगे क्या? क्या हम इस हादसे को एक और दुर्घटना मानकर भूल जाएंगे? या यह आत्ममंथन का अवसर बनेगा?
सुधार के कुछ आवश्यक बिंदु:
विमानों की समय-समय पर गहन तकनीकी जांच अनिवार्य की जाए। पायलटों और चालक दल का रिफ्रेशर ट्रेनिंग कोर्स हर छह महीने में अनिवार्य हो। रनवे और हवाई अड्डों की निगरानी प्रणाली में अत्याधुनिक तकनीक का प्रयोग किया जाए।डीजीसीए जैसी संस्थाओं को स्वायत्तता और जवाबदेही के साथ पुनर्गठित किया जाए। आपातकालीन प्रबंधन की व्यवस्था को जिला स्तर पर सुदृढ़ किया जाए।
हर नागरिक की यह ज़िम्मेदारी है कि वह सार्वजनिक सेवाओं के प्रति जागरूक और सतर्क रहे। अगर किसी विमान यात्रा में कुछ भी असामान्य लगे – ध्वनि, कम्पन, देरी – तो उसे संबंधित अधिकारियों को सूचित किया जाए। साथ ही, सोशल मीडिया पर झूठी खबरों और अफवाहों से बचते हुए, सही जानकारी साझा करें। भीड़ का हिस्सा बनने की बजाय विवेकपूर्ण प्रतिक्रिया दें।
यह हादसा हमें यह सोचने पर मजबूर करता है कि क्या हमने तकनीक पर बहुत अधिक भरोसा कर लिया है? क्या हमने मान लिया है कि हवाई जहाज में बैठने का मतलब है सौ फीसदी सुरक्षा? हर हादसा एक संकेत होता है — चेतावनी होती है — ताकि हम भविष्य को बचा सकें।
हम सरकार से, एयरलाइंस से, हवाई सुरक्षा एजेंसियों से और स्वयं से यह अपेक्षा कर सकते हैं कि यह हादसा एक मोड़ बने — केवल मुआवज़े, जांच समिति और मीडिया कवरेज तक सीमित न रहे, बल्कि बदलाव का प्रारंभ बने। आज का प्रश्न यही है – क्या यह हादसा हमारी सामूहिक चेतना को झकझोरने के लिए पर्याप्त है? या हम इसे भी भूलकर अगली त्रासदी की प्रतीक्षा करेंगे।
शरद कटियार
प्रधान संपादक, दैनिक यूथ इंडिया