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Tuesday, August 5, 2025

जैविक खेती की राह: मिट्टी से रिश्ता निभाने का समय- एक जागरूक गन्ना किसान की कलम से

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मैं एक सामान्य किसान (farmer) हूँ, पीलीभीत (pilibhit) की उसी उपजाऊ धरती से जुड़ा हुआ, जहाँ गन्ना (sugarcane) हमारे खेतों की पहचान है और पेट भरने का साधन। वर्षों से हम किसान अपने खेतों को हरा-भरा रखने के लिए हर संभव कोशिश करते आए हैं। कीटों से बचाव के लिए रासायनिक दवाओं का सहारा लिया, वैज्ञानिक सलाह ली, और नई-नई विधियों को अपनाया, लेकिन नतीजा यह हुआ कि लागत आसमान छूने लगी, मुनाफा कम होता गया, और हमारी मिट्टी धीरे-धीरे निढाल हो गई।

बीते दिन हमारे गाँव में जिला गन्ना अधिकारी खुशीराम भार्गव का आगमन हुआ। आमतौर पर अधिकारी आते हैं, भाषण देते हैं और चले जाते हैं, लेकिन भार्गव जी ने कुछ अलग किया। उन्होंने हम किसानों से हमारी भाषा में बात की। उन्होंने हमें समझाया कि खेती में कीटों से लड़ने के लिए केवल जहरीले रसायनों का सहारा लेना ही एकमात्र विकल्प नहीं है। उन्होंने हमें ट्राईकोकार्ड, फेरोमोन ट्रैप, नीम तेल जैसे जैविक उपायों के बारे में बताया — ये सब हमारे लिए नए नाम थे, लेकिन उनकी वैज्ञानिकता और पर्यावरणीय फायदे जानकर हमें पहली बार लगा कि खेती में सचमुच बदलाव संभव है।

खुशीराम भार्गव जिला गन्ना अधिकारी की सबसे बड़ी विशेषता यह रही कि उन्होंने किसानों को श्रोता नहीं, सहभागी माना। उन्होंने हमारी समस्याओं को गंभीरता से सुना और हमारे अनुभवों को महत्व दिया। उनका यह संदेश कि “जैविक खेती केवल पर्यावरण रक्षा का माध्यम नहीं, बल्कि किसानों की आर्थिक मजबूती का आधार भी बन सकती है” — हमारे मन में गूंजता रहा।

उन्होंने हमें समझाया कि जैविक तरीकों से केवल फसल को ही नहीं बचाया जाता, बल्कि मिट्टी की सेहत भी सुधरती है, पानी में जहर नहीं घुलता, और खेतों में फिर से मधुमक्खियों की गूंज सुनाई देती है — जो इस धरती की असली धड़कन हैं। ये बातें किसी किताब से नहीं, बल्कि एक ज़मीन से जुड़े अधिकारी की ज़ुबान से निकलकर आईं, जो आज के समय में दुर्लभ है।

आज मैं अपने तमाम साथी किसानों से कहना चाहता हूँ कि अब वक्त आ गया है कि हम रासायनिक खेती की लत से बाहर निकलें। खेती को केवल मुनाफे का सौदा न समझें, यह हमारी आने वाली पीढ़ियों की जिम्मेदारी है। जो मिट्टी आज हमसे थक चुकी है, वह हमारी थोड़ी समझदारी से फिर से हरी हो सकती है।
अगर हमारी मिट्टी ज़िंदा रहेगी, तभी हमारा भविष्य भी ज़िंदा रहेगा। जैविक खेती की यह राह कठिन जरूर है, लेकिन यही वह राह है, जो हमारी मिट्टी से रिश्ता निभाने की सच्ची मिसाल है।

संपादकीय लेख
मुकेश कुमार

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