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Monday, September 22, 2025

जिले में मुख्यमंत्री के आदेश बेअसर, धड़ल्ले से खुल रहे अवैध अस्पताल

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– मसेनी चौराहा से पांचाल घाट तक अवैध अस्पतालों की भरमार, स्वास्थ्य विभाग बना मूक दर्शक

फर्रुखाबाद: प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ (Chief Minister Yogi Adityanath) द्वारा अवैध अस्पतालों (illegal hospitals), पैथोलॉजी लैब, एक्स-रे और अल्ट्रासाउंड सेंटरों के खिलाफ सख्त कार्रवाई के निर्देश दिए गए थे। इन आदेशों के बाद कुछ समय तक स्वास्थ्य विभाग (health department) ने दिखावे की कार्रवाई करते हुए वाहवाही बटोरी, लेकिन अब हालात फिर पुराने ढर्रे पर लौटते दिख रहे हैं। जिले में एक बार फिर दर्जनों अवैध अस्पताल खुलेआम संचालित हो रहे हैं, और विभागीय अधिकारी चुप्पी साधे बैठे हैं।

मसेनी चौराहा पहले ही अवैध अस्पतालों के लिए बदनाम रहा है। अब स्थिति यह है कि मसेनी चौराहे से लेकर पांचाल घाट चौराहे तक अवैध अस्पतालों की भरमार हो गई है। इटावा-बरेली हाईवे स्थित दीनदयाल बाग क्षेत्र में संचालित ‘मां गौरी हॉस्पिटल’ में हाल ही में एक मरीज की संदिग्ध परिस्थितियों में मौत हो गई थी।

इस मामले में कार्रवाई की बात कही जा रही थी, लेकिन सूत्रों के अनुसार, सीएमओ ऑफिस के एक वरिष्ठ बाबू ने मोटी रकम लेकर मामले को दबा दिया। इसी क्षेत्र में चंदन हॉस्पिटल और अन्य दो-तीन अस्पताल भी अवैध रूप से संचालित हो रहे हैं। इन अस्पतालों के पास न तो पंजीकरण है, न प्रशिक्षित स्टाफ, न ही जरूरी चिकित्सीय मानकों का पालन। इसके बावजूद ये हर दिन मरीजों की जान से खिलवाड़ कर रहे हैं।

मां गौरी हॉस्पिटल के संचालक यादवेंद्र यादव का कथित बयान भी चिंताजनक है। उन्होंने कहा – “मैं योगी सरकार से नहीं डरता। जहां पैसा फेंकते हैं, वहां तमाशा देखते हैं।” स्थानीय लोगों का आरोप है कि यादवेंद्र यादव जिले के कई रसूखदारों और दबंगों से संबंध रखते हैं, जिसके कारण वह किसी भी सरकारी कार्रवाई से बेफिक्र नजर आते हैं। मरीजों और परिजनों से अभद्र व्यवहार की शिकायतें भी लगातार मिल रही हैं।

स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों और कर्मचारियों पर भी सवाल उठ रहे हैं। जिले में बिना लाइसेंस और अनुमोदन के चल रहे अस्पतालों की जानकारी विभाग को न हो, यह मुश्किल है। ऐसे में या तो विभाग की कार्यशैली पर सवाल उठता है या फिर मिलीभगत की आशंका पुख्ता होती है। मुख्यमंत्री के निर्देशों के बावजूद कार्रवाई न होना यह दर्शाता है कि जिले में सिस्टम के अंदर ही कहीं गड़बड़झाला है। सवाल यह भी है कि जब कोई बड़ा हादसा होगा, तभी क्या प्रशासन जागेगा?

स्थानीय नागरिकों और समाजसेवियों में इस पूरे मामले को लेकर गहरा आक्रोश है। उनका कहना है कि यदि तत्काल इन अवैध अस्पतालों के खिलाफ कठोर कार्रवाई नहीं हुई तो यह किसी बड़े जन आंदोलन का कारण बन सकता है। मुख्यमंत्री के सख्त निर्देशों के बावजूद जिले में अवैध स्वास्थ्य संस्थानों का खुला खेल यह साबित करता है कि कहीं न कहीं प्रशासनिक इच्छाशक्ति की कमी है। अब देखना यह है कि शासन-प्रशासन इस मामले में कब तक आंखें मूंदे बैठा रहता है।

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