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Tuesday, September 23, 2025

विवाद से संवाद तक – भगवान परशुराम पर टिप्पणी प्रकरण में सौहार्द की विजय

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शरद कटियार

फर्रुखाबाद में हाल ही में भगवान परशुराम के विरुद्ध कथित टिप्पणी को लेकर उत्पन्न हुआ विवाद जिस तरह सौहार्दपूर्ण ढंग से समाप्त हुआ, वह हमारे सामाजिक और प्रशासनिक तंत्र की परिपक्वता को दर्शाता है। यह घटना न केवल धार्मिक सहिष्णुता और विधिक जागरूकता की कसौटी थी, बल्कि यह भी प्रमाणित करती है कि जब संवाद को प्राथमिकता दी जाती है, तो सबसे जटिल टकराव भी समाधान की राह पा सकते हैं।

इस संपादकीय में हम न केवल इस घटना के सामाजिक, राजनीतिक और प्रशासनिक पहलुओं का विश्लेषण करेंगे, बल्कि इससे मिलने वाली शिक्षा पर भी विचार करेंगे, जो वर्तमान समय में अत्यंत प्रासंगिक है।

भगवान परशुराम, जिन्हें भारतीय संस्कृति में छठे विष्णु अवतार के रूप में पूजा जाता है, विशेष रूप से ब्राह्मण और क्षत्रिय समुदायों में गहन श्रद्धा के प्रतीक माने जाते हैं। उनकी वीरता, त्याग और न्यायप्रियता की अनेक कथाएं भारतीय लोकचेतना में रची-बसी हैं। ऐसे में जब सपा के एक कार्यक्रम के दौरान अधिवक्ता और पूर्व बार अध्यक्ष जवाहर सिंह गंगवार का एक वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुआ, जिसमें उन्हें कथित रूप से परशुराम के विरुद्ध टिप्पणी करते हुए दिखाया गया, तो अनेक सामाजिक संगठनों ने विरोध प्रकट किया।

यह विरोध केवल एक व्यक्ति के विरुद्ध नहीं था, बल्कि यह समुदाय विशेष की सांस्कृतिक भावनाओं से जुड़ा हुआ विषय बन गया। सोशल मीडिया पर प्रतिक्रियाओं की बाढ़ आ गई और मामला कानून-व्यवस्था की दृष्टि से संवेदनशील बन गया।

ऐसे मामलों में प्रशासन की भूमिका अत्यंत निर्णायक होती है। जिलाधिकारी आशुतोष कुमार द्विवेदी ने तत्परता दिखाते हुए नगर मजिस्ट्रेट संजय बंसल के नेतृत्व में एक बैठक बुलाई। इस बैठक में सभी संबंधित पक्षों को आमंत्रित किया गया – जिसमें प्रशासनिक अधिकारी, अधिवक्ता समुदाय के प्रमुख सदस्य, सामाजिक कार्यकर्ता और विवाद से प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से प्रभावित लोग सम्मिलित थे।

बैठक में कुल 14 सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल उपस्थित रहा, जिसमें रजनीकांत (एसडीएम सदर), धर्मराज सिंह (LIU), राजीव बाजपेई, प्रबल त्रिपाठी, सरल दुबे, भईयन मिश्रा और अन्य प्रमुख लोग मौजूद थे। यह समावेशी दृष्टिकोण ही इस बात का संकेत था कि समाधान केवल औपचारिक प्रक्रिया नहीं, बल्कि संवाद से निकलेगा।

बैठक में अधिवक्ता जवाहर सिंह गंगवार ने जिस शालीनता और संवेदनशीलता के साथ अपनी बात रखी, वह अत्यंत प्रशंसनीय है। उन्होंने स्पष्ट किया कि उन्होंने भगवान परशुराम के विरुद्ध कोई टिप्पणी नहीं की है और यदि उनके किसी कथन से किसी की भावनाएं आहत हुई हैं, तो वह उसके लिए खेद प्रकट करते हैं। यह वक्तव्य किसी कानूनी बाध्यता के तहत नहीं, बल्कि सामाजिक उत्तरदायित्व और नैतिकता की भावना से प्रेरित था।

यह भी महत्वपूर्ण है कि श्री गंगवार ने अपने और अपने परिवार के विरुद्ध सोशल मीडिया पर फैलाई गई नफरत और धमकियों को लेकर चिंता जताई। यह आज के डिजिटल युग की एक गंभीर समस्या है, जहां किसी भी कथन को संदर्भ से काटकर सनसनी फैलाई जा सकती है। सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर जिम्मेदार व्यवहार की आवश्यकता पर यह घटना गहन प्रश्नचिन्ह खड़ा करती है।

बैठक का सबसे सार्थक पहलु यह रहा कि सभी पक्षों ने श्री गंगवार की सफाई से संतुष्टि जताई और आपसी सहमति से विवाद समाप्त करने पर हस्ताक्षर किए। यह सहमति केवल दस्तावेजी नहीं थी, बल्कि उसमें परस्पर विश्वास और भविष्य की शांति का वचन निहित था। नगर मजिस्ट्रेट संजय बंसल द्वारा भईयन मिश्रा और श्री गंगवार को गले मिलवाना इस सौहार्द की प्रतीकात्मक और वास्तविक अभिव्यक्ति थी।

यह दृश्य उन सभी के लिए प्रेरणास्पद है जो मतभेदों को द्वेष में बदलने की प्रवृत्ति रखते हैं। यही भारतीय लोकतंत्र की खूबी है कि इसमें असहमति की गुंजाइश है, लेकिन समाधान की संभावना भी सदैव बनी रहती है।

संवाद ही समाधान है:

जब भी कोई विवाद उत्पन्न हो, उसका समाधान शक्ति प्रदर्शन या हिंसा नहीं, बल्कि संवाद से ही संभव होता है। प्रशासन की भूमिका केवल विधि व्यवस्था बनाए रखने तक सीमित नहीं है, बल्कि यह सामाजिक तनावों को समय रहते सुलझाने में भी अत्यंत निर्णायक होती है। सोशल मीडिया आज अभिव्यक्ति का सशक्त माध्यम है, लेकिन इसके दुरुपयोग से सामाजिक शांति भंग हो सकती है। अतः इसे विवेकपूर्ण और जिम्मेदारी से प्रयोग करना आवश्यक है।समाज के अगुआओं, विशेषकर अधिवक्ताओं और जनप्रतिनिधियों को अपनी वाणी और आचरण में अतिरिक्त सावधानी रखनी चाहिए।

धार्मिक सहिष्णुता का पालन:

भारत विविधता में एकता का देश है। सभी धर्मों, मतों और विश्वासों के प्रति सम्मान भाव ही सामाजिक सौहार्द की नींव है। फर्रुखाबाद की इस घटना ने एक बार फिर यह सिद्ध किया कि समाज में जब विवेक, धैर्य और संवाद का स्थान होता है, तब हर टकराव समाधान में बदल सकता है। आज जब देश भर में धार्मिक असहिष्णुता, राजनीतिक ध्रुवीकरण और डिजिटल भड़काऊ प्रवृत्तियां बढ़ रही हैं, तब फर्रुखाबाद की यह पहल एक मॉडल के रूप में प्रस्तुत की जा सकती है।

नगर मजिस्ट्रेट संजय बंसल, जिलाधिकारी आशुतोष कुमार द्विवेदी और सभी सहभागियों ने जो उदाहरण प्रस्तुत किया, वह केवल एक विवाद का अंत नहीं था, बल्कि वह सामाजिक सौहार्द की पुनर्स्थापना थी। इससे हमें यह विश्वास मिलता है कि प्रशासन और समाज यदि मिलकर प्रयास करें, तो कटुता के बादल भी छंट सकते हैं और सूरज फिर से निकल सकता है।

इस घटना से प्रेरणा लेकर देश के अन्य हिस्सों में भी ऐसे टकरावों को समानुपातिक समझदारी से सुलझाया जा सकता है – क्योंकि अंततः हर समाज की सबसे बड़ी आवश्यकता है शांति और आपसी विश्वास।

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