अनुराग चौधरी ✍🏻
मौन, वह परम तत्व है, जो न शब्दों का बंधन चाहता है, न व्याख्या की याचना करता है। वह चेतना का वह शुद्धतम स्तर है, जहाँ विचार नहीं, अनुभूति बोलती है। आज के युग में, जहाँ शब्दों की सस्ती सजावट ने संवेदनाओं की गहराई को निगल लिया है, वहाँ मौन ही वह दीप है, जो आत्मा के कोने कोने को आलोकित करता है।हम अक्सर शब्दों को अभिव्यक्ति का साधन मानते हैं, परंतु शब्द केवल ध्वनि हैं, यदि उनमें मौन का स्पंदन न हो।
मौन वह स्रोत है, जहाँ विचार जन्म लेते हैं, और आत्मबोध की नर्म कोंपलें फूटती हैं।यह वह क्षण है, जब मनुष्य स्वयं से संवाद करता है, और संसार उससे उत्तर माँगता है।
जब माँ बिना कहे थाली रख देती है वह मौन बोलता है।जब पिता की आँखों में थकान की धुंध उतरती है,वह मौन पुकारता है।
जब एक प्रेमी विदा होते हुए मुस्कुराता है,वहाँ मौन रुदन करता है।आज की दुनिया में, जहाँ कोलाहल को प्रगति और अविराम वाणी को जागरूकता समझा गया है, वहाँ मौन को मूर्खता, कमज़ोरी या अहंकार समझ लिया गया है।
परंतु सत्य यह है कि मौन न कायर होता है, न अशक्त, वह आत्मबल का मूर्त रूप होता है।मौन वह मंत्र है, जिसे समझने के लिए हृदय को सुनना पड़ता है, कानों को नहीं।
क्या आपने कभी किसी वृद्ध की आँखों में बैठा मौन पढ़ा है?क्या किसी निर्धन की चुप्पी ने आपको विचलित किया है?
क्या किसी बालक की चुप मुस्कान ने आपके विचारों को झिंझोड़ डाला है?यदि नहीं… तो आप केवल सुनते हैं,समझते नहीं।
अब समय है एक नवयुग की शुरुआत करने का,जहाँ हम मौन को भाष्य दें, खामोशी को गरिमा दें,जहाँ हम केवल शब्दों से नहीं, अर्थों से जुड़ें,जहाँ हम आवाज़ों के पार जाकर आत्मा की गूँज सुनें।
क्योंकि जहाँ मौन बोलता है, वहाँ सच्चाई जन्म लेती है,और यही मौन वह विचार है जो विचार नहीं, क्रांति है।
यदि शब्दों का अर्थ चाहिए, तो मौन को समझो,और यदि आत्मा का सत्य चाहिए, तो मौन में उतर जाओ,वहीं मिलेगा वह उत्तर, जिसे युगों से हम खोज रहे हैं।
लेखक ऍम कॉम की पढ़ाई पूरी करने के बाद सिविल सर्विसेज की तैयारी कर रहा है।