– मोहम्मदाबाद में सत्ता, माफिया और सिस्टम की साजिश
फर्रुखाबाद। मोहम्मदाबाद विकासखंड की ब्लॉक प्रमुख की कुर्सी बीते तीन वर्षों से खाली पड़ी है, लेकिन न शासन को परवाह है, न प्रशासन को चिंता। संवैधानिक रूप से जहां 6 माह के भीतर उपचुनाव अनिवार्य है, वहीं यह सीट वर्षों से भ्रष्टाचार और माफिया गठजोड़ के चलते जानबूझकर रोकी जा रही है। और इस खेल में सबसे बड़ा नाम सामने आ रहा है—कुख्यात माफिया अनुपम दुबे और उसके भाई पूर्व ब्लॉक प्रमुख अमित दुबे बब्बन का, जिन पर जिलेभर में कई संगीन आपराधिक मुकदमे दर्ज हैं।
उत्तर प्रदेश पंचायती राज अधिनियम 1947 की धारा 12(3) के अनुसार, यदि किसी कारणवश ब्लॉक प्रमुख का पद रिक्त होता है, तो 6 माह के भीतर उपचुनाव कराना अनिवार्य है। लेकिन मोहम्मदाबाद विकासखंड में यह पद लगातार तीन सालों से रिक्त है, और शासन-प्रशासन की चुप्पी इस अवैधता की गवाही देती है।
सूत्र बताते हैं कि मोहम्मदाबाद क्षेत्र में यह देरी पूर्व ब्लॉक प्रमुख अमित दुबे बब्बन और उनके माफिया नेटवर्क की मिलीभगत से हो रही है। इनके खिलाफ दर्ज मामलों की संख्या एक दर्जन से अधिक है, जिनमें भूमि कब्जा, धमकी, ठेका घोटाले और रंगदारी जैसे संगीन अपराध शामिल हैं।
इस पूरे खेल में सवाल यह है—आख़िर कौन है जो इन अपराधियों को राजनीतिक छतरी दे रहा है?
वास्तव में नगर पंचायत बनने के बाद बब्बन का प्रभाव क्षेत्र—बाग रठौरा समेत कई गांव—नगरीय क्षेत्र में आ गए। इसके चलते उनके बीडीसी वोट बैंक समाप्त हो गए। लेकिन फिर भी, ब्लॉक प्रमुख चुनाव जानबूझकर रोके जा रहे हैं ताकि कोई नया नेतृत्व न उभरे और ठेकों की मलाई पर उन्हीं का वर्चस्व बना रहे।
मोहम्मदाबाद क्षेत्र के भाजपा विधायक नागेंद्र सिंह राठौर का क्षेत्र में गहरा दबदबा है, लेकिन यह सवाल भी जनता पूछ रही है—आख़िर क्यों वे इस संवैधानिक अनदेखी पर मौन हैं?
क्या विधायक जी की चुप्पी इस माफिया तंत्र की मौन स्वीकृति है?
चौंकाने वाली बात यह है कि इस उपचुनाव के लिए शासन को भेजी जाने वाली फाइलें और पत्र जिला पंचायती राज कार्यालय में ही दबी पड़ी हैं। हर बार केवल खानापूर्ति कर छुट्टी डाल दी जाती है, जिससे शासन तक प्रस्ताव ही नहीं पहुंचता। यह एक सुनियोजित साजिश का संकेत है।
सड़क, जल, स्वच्छता, महिला समूह, शिक्षा आदि योजनाएं ठप है।
ठेके केवल चुनिंदा लोगों को दिए जा रहे, जिनका संबंध पूर्व माफिया प्रभाव से जुड़ा है
जनता का कहना है—”अब सब कुछ फाइलों में बंद है, और विकास भगवान भरोसे।” एक स्थानीय बुज़ुर्ग ने तंज कसते हुए कहा, “अंधा पीछे और कुत्ते खाएं, यही हाल है विकास का!”
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की माफियाओं पर ज़ीरो टॉलरेंस नीति की खुलेआम अवहेलना हो रही है। यदि यह तंत्र उन्हीं की सरकार में इतने वर्षों से पनप रहा है, तो यह प्रशासनिक तंत्र की गहराई में छिपे गठजोड़ की गंभीर चेतावनी है।
मोहम्मदाबाद की जनता आज जानना चाहती है—
क्या अपराधियों का दबदबा संविधान से बड़ा है?
क्या जनप्रतिनिधि जनता की आवाज़ दबाने का माध्यम बन चुके हैं? और सबसे बड़ा सवाल—तीन साल से ब्लॉक प्रमुख की कुर्सी खाली रहने की जवाबदेही कौन तय करेगा?
अब वक्त आ गया है कि मुख्यमंत्री खुद इस मामले का संज्ञान लें और मोहम्मदाबाद क्षेत्र में लोकतंत्र, विकास और संवैधानिक मर्यादा की वापसी हो।