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Thursday, August 7, 2025

अपराध और राजनीति का खतरनाक गठजोड़: कब तक बर्दाश्त करेगा फर्रुखाबाद?

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शरद कटियार

फर्रुखाबाद की राजनीतिक ज़मीन आज जिस दलदल में धँसी हुई है, वहाँ से विकास, ईमानदारी और जनकल्याण की कोई किरण निकलती नहीं दिख रही। जिले में अपराध का परचम लहराने वाले कथित जनप्रतिनिधि आदित्य राठौर का मामला इस स्याह तस्वीर की ताजा मिसाल है। जिला पंचायत सदस्य के रूप में चुने गए राठौर का नाम लगातार संगीन अपराधों और संगठित अपराधी गिरोह से जुड़ता रहा है। वर्ष 2021 में जब तत्कालीन जिलाधिकारी मानवेंद्र सिंह ने उन्हें ‘माफिया’ घोषित किया था, तब यह उम्मीद जगी थी कि कानून अपना काम करेगा। लेकिन तीन वर्ष बीतने के बाद भी स्थिति जस की तस बनी हुई है।

लोकतंत्र की आड़ में अपराधियों की बादशाहत

चुनाव जीतकर अगर कोई व्यक्ति जनता के सेवक की बजाय अपराधियों का सरगना बन जाए, तो यह लोकतंत्र की सबसे बड़ी विफलता है। आदित्य राठौर का प्रकरण इसी विफलता की भयावह बानगी है। रंगदारी, मारपीट, जालसाजी जैसे अपराधों से घिरे राठौर का नाम एक गैस एजेंसी संचालक की पिटाई के मामले में फिर से सामने आया है। पीड़ित पक्ष का आरोप है कि रविवार रात राठौर के नेतृत्व में एक गिरोह ने रंगदारी नहीं देने पर जमकर मारपीट की। और सबसे चौंकाने वाली बात यह कि ये लोग खुलेआम घूमते हैं, कथित तौर पर राजनीतिक संरक्षण प्राप्त करते हैं और पीड़ितों को ही क्रॉस मुकदमे की धमकी देते हैं।

सपा, के बाद भाजपा और अपना दल एस—सबको दीमक की तरह चाट रहा गिरोह

एक समय समाजवादी पार्टी से जुड़े रहे आदित्य राठौर ने वहां भी अपनी दबंगई और अपराधिक गतिविधियों से पार्टी की छवि धूमिल की। बाद में सत्ता के समीकरण साधने के लिए भाजपा और अपना दल एस की छत्रछाया तलाश ली। लेकिन परिणाम यह हुआ कि इन दलों की स्थानीय शाखाएँ भी अविश्वसनीयता के गर्त में चली गईं। अपना दल एस के स्थानीय कार्यकर्ता स्वयं को उपेक्षित और ठगा हुआ महसूस कर रहे हैं। पार्टी की साख लगभग समाप्तप्राय है, और इसके पीछे मुख्य कारण वही लोग हैं जिन्होंने पार्टी के नाम पर अपने निजी स्वार्थों और अपराधिक मंसूबों को अंजाम दिया।
आदित्य राठौर और उनके कथित गिरोह पर जनपद निधि का दुरुपयोग कर फर्जी योजनाएँ चलाने का आरोप है। यह गिरोह योजनाओं की आड़ में भ्रष्टाचार करता है, जिससे न सिर्फ सरकारी खजाने को चूना लगता है, बल्कि गरीब जनता की उम्मीदें भी टूटती हैं। विकास के नाम पर जिले में जो भी योजनाएँ आती हैं, उनका लाभ जनता की बजाय इस संगठित गिरोह को जाता है।

सुरक्षा का वादा, भय का राज

प्रदेश सरकार अपराध और भ्रष्टाचार पर “जीरो टॉलरेंस” की नीति का दावा करती रही है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ स्वयं हर मंच से कहते हैं कि अपराधियों को बख्शा नहीं जाएगा। लेकिन अगर एक घोषित माफिया, जिसकी हिस्ट्रीशीट दर्ज है, आज भी खुलेआम अपराध करता है और दबंगई से पीड़ितों को ही डरा धमका रहा है, तो यह नीति सिर्फ कागजों पर ही कारगर लगती है।

जहानगंज थाने में हुई ताज़ा घटना इसका प्रमाण है जहाँ एक पूर्व छात्र संघ अध्यक्ष के समर्थन में भारी संख्या में सजातीय लोग थाने पहुँच गए। यह कानून के समक्ष एक सीधी चुनौती थी। किसी अपराध के आरोपी का समर्थन करना, उसे शक्ति प्रदर्शन का माध्यम बनाना एक गंभीर चिंता का विषय है। यह समाज को जातीय आधार पर बाँटने और अपराधियों को संरक्षण देने की खतरनाक मानसिकता को दर्शाता है।

पीड़ित परिवारों ने अपनी सुरक्षा और न्याय के लिए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से हस्तक्षेप की माँग की है। स्थानीय प्रशासन से अब लोगों की उम्मीदें टूटती जा रही हैं। अपराधियों के खिलाफ कार्रवाई की बजाय उनके खिलाफ बोलने वालों पर ही दबाव डाला जाता है। फर्रुखाबाद की जनता अब उम्मीद लगाए बैठी है कि मुख्यमंत्री इस मामले को गंभीरता से लेकर सीधे दखल देंगे।

सवाल यह है कि जब एक व्यक्ति को 2021 में ही माफिया घोषित कर दिया गया था, तो आज 2025 में भी उस पर कोई निर्णायक कार्रवाई क्यों नहीं हुई? क्या प्रशासनिक मशीनरी राजनीतिक दबाव में निष्क्रिय है? क्या कुछ सफेदपोश नेता इस गिरोह के रक्षक बन बैठे हैं?

स्थानीय मीडिया का एक वर्ग इस पूरे मामले में चुप्पी साधे हुए है। सवाल उठता है कि क्या यह चुप्पी दबाव का नतीजा है या स्वार्थ का? एक सजग और निष्पक्ष मीडिया ही लोकतंत्र की नींव को मजबूती दे सकता है, लेकिन जब वही मीडिया अपराधियों के पक्ष में खड़ा नजर आए या पूरी तरह चुप्पी साध ले, तो यह स्थिति और अधिक भयावह हो जाती है।
फर्रुखाबाद की जनता को अब यह समझना होगा कि अगर वह अपराध और भ्रष्टाचार के खिलाफ एकजुट नहीं हुई, तो आने वाले समय में स्थिति और भी विकराल हो जाएगी। अब समय आ गया है कि अपराधियों के खिलाफ खुलकर आवाज़ उठाई जाए, जनप्रतिनिधियों से जवाब मांगा जाए, और प्रशासन पर दबाव बनाया जाए कि वह निष्पक्ष और सख्त कार्रवाई करे।

अपराधी नहीं, जनसेवक चाहिए

लोकतंत्र की सफलता तब है जब जनता का प्रतिनिधि उसकी सेवा करे, न कि उसे डर और अन्याय में झोंक दे। आदित्य राठौर जैसे लोग न सिर्फ राजनीति की साख को गिरा रहे हैं बल्कि समाज में अराजकता और भय का वातावरण बना रहे हैं। अगर ऐसे तत्वों पर समय रहते कार्रवाई नहीं हुई, तो लोकतंत्र का मूल्य और जनता की आस्था दोनों ही खोखले हो जाएँगे।

फर्रुखाबाद की जनता, मीडिया, प्रशासन और सरकार को मिलकर यह तय करना होगा कि अब और देर नहीं होनी चाहिए। अपराधियों पर सख्त कार्रवाई ही जिले की साख और शांति को लौटाने का एकमात्र रास्ता है।

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