प्रशांत कटियार
7 मई 2025 को भारतीय सशस्त्र बलों ने ऑपरेशन सिंदूर के तहत आतंकवाद के खिलाफ एक बड़ी और साहसिक कार्रवाई को अंजाम दिया। इस ऑपरेशन में पाकिस्तान और पाकिस्तान के कब्जे वाले जम्मू-कश्मीर (PoJK) स्थित नौ आतंकी ठिकानों को सटीक निशाना बनाकर तबाह कर दिया गया। इस कार्रवाई में लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद जैसे प्रतिबंधित संगठनों से जुड़े कुख्यात आतंकियों के मारे जाने की पुष्टि हुई है।
ढेर हुए आतंकियों की सूची में मसूद अजहर का भाई और उसके पत्नी का भाई शामिल हैं, जो कुख्यात IC-814 विमान अपहरण कांड में वांछित थे। यह कार्रवाई दरअसल 22 अप्रैल को अनंतनाग जिले के पहलगाम क्षेत्र में हुए आतंकवादी हमले का करारा जवाब थी, जिसमें भारतीय सुरक्षा बलों के जवान शहीद हुए थे।
भारत की इस सर्जिकल कार्रवाई के बाद पाकिस्तान ने बौखलाहट में जम्मू-कश्मीर से लेकर गुजरात तक भारत के 26 से अधिक इलाकों में ड्रोन हमले किए, जो स्पष्ट रूप से उसकी नापाक मंशा और प्रतिशोध की मानसिकता को दर्शाते हैं।लेकिन इस पूरे परिदृश्य में जो सबसे चिंताजनक बात उभर कर सामने आ रही है, वह है चीन, तुर्की और कुछ मुस्लिम देशों द्वारा पाकिस्तान को मिल रहा अप्रत्यक्ष समर्थन। विशेषज्ञों का मानना है कि यह लड़ाई अब सीधे तौर पर चीन की रणनीतिक योजना का हिस्सा बन चुकी है, जिसमें पाकिस्तान सिर्फ एक मोहरा है। यह युद्ध अब भारत के सैन्य संसाधनों और रणनीतिक धैर्य की परीक्षा बन चुका है।
भारत के सामने दो ही रास्ते हैं या तो वह डिफेंसिव डिप्लोमेसी से अंतरराष्ट्रीय मंचों पर अपनी स्थिति मजबूत करे, या फिर एक निर्णायक सैन्य कार्रवाई से न केवल पाकिस्तान को झुका दे, बल्कि आतंक की रीढ़ भी तोड़ दे। आज अगर भारत पीछे हटता है, तो वह केवल भू राजनीतिक दबाव में नहीं, बल्कि अपनी रणनीतिक साख की भी क्षति करेगा।
इसके समानांतर, अंतराष्ट्रीय मुद्रा कोष द्वारा पाकिस्तान को 1 अरब डॉलर का ऋण पैकेज भी अंतरराष्ट्रीय राजनीति का एक त्रासद चेहरा उजागर करता है। भारत ने इस पर आपत्ति तो जताई, लेकिन वह इस प्रस्ताव के खिलाफ मतदान करने की स्थिति में नहीं आ सका यह भी भारत की कूटनीतिक रणनीति की सीमाओं को उजागर करता है।
भारत तीसरी सबसे बड़ी वैश्विक अर्थव्यवस्था बनने की दिशा में अग्रसर है। लेकिन यदि युद्ध या दीर्घकालिक संघर्ष में वह उलझता है, तो उसकी आर्थिक प्रगति, निवेश वातावरण और जनसांख्यिकीय ऊर्जा को भारी नुकसान पहुंचेगा। इसलिए युद्ध की दिशा में यदि कदम बढ़ाना है, तो वह पूरी तैयारी और अंतरराष्ट्रीय सहमति के साथ हो। और यदि शांति कायम रखनी है, तो वह सिर्फ कमजोर रुख से नहीं, बल्कि मजबूत कूटनीति और आक्रामक रणनीति से संभव है।अब वक्त आ गया है कि भारत एक-एक रन लेकर नहीं, बल्कि निर्णायक छक्का मारकर इस रणनीतिक मैच को अंजाम तक पहुंचाए।
लेखक दैनिक यूथ इंडिया के स्टेट हेड है।