शरद कटियार
भारत और पाकिस्तान के बीच ऐतिहासिक विवाद ने एक नया मोड़ लिया है। “ऑपरेशन सिंदूर” के तहत भारत ने पाकिस्तान के कई प्रमुख शहरों को निशाना बनाया, जिससे दोनों देशों के बीच सैन्य संघर्ष की स्थिति उत्पन्न हो गई। इस सम्पादकीय में हम “ऑपरेशन सिंदूर”, पाकिस्तान के जवाबी हमलों, और इस संघर्ष के परिणामस्वरूप उत्पन्न हुई मानवीय और राजनीतिक स्थिति पर गहन विचार करेंगे।
भारत द्वारा “ऑपरेशन सिंदूर” के तहत पाकिस्तान के नौ प्रमुख शहरों – इस्लामाबाद, लाहौर, कराची, सियालकोट, बहावलपुर, पेशावर, मुल्तान, रावलपिंडी, और क्वेटा – पर मिसाइलों और ड्रोन से हमला किया गया। यह भारत की एक रणनीतिक सैन्य कार्रवाई थी, जिसका उद्देश्य पाकिस्तान में स्थित आतंकवादी ठिकानों और सैन्य प्रतिष्ठानों को निशाना बनाना था। भारतीय वायुसेना और नौसेना के साथ-साथ भारतीय आर्मी ने इस ऑपरेशन में भाग लिया, और इस समन्वित हमले में पाकिस्तान के कई प्रमुख सैन्य ठिकानों और आतंकवादी कैंपों को निशाना बनाया गया।
भारत के रक्षा मंत्रालय ने पुष्टि की कि ऑपरेशन के तहत पाकिस्तान की सीमा से लगे इलाकों में कई सैन्य ठिकानों को भारी नुकसान हुआ। भारतीय वायुसेना ने पाकिस्तान के F-16 और JF-17 जेट विमानों को भी मार गिराया। इसके अलावा, भारत के ड्रोन हमलों ने पाकिस्तानी ड्रोन और मिसाइलों को नष्ट कर दिया। इस हमले के बाद पाकिस्तान के भीतर एक घबराहट की स्थिति उत्पन्न हो गई, और पाकिस्तान की सेना ने भारतीय हमले के जवाब में अपनी सीमाओं पर रक्षा को मजबूत कर लिया।
पाकिस्तान ने अपने हवाई क्षेत्र में भारतीय हमलों के बाद जवाबी कार्रवाई की योजना बनाई और भारतीय शहर जम्मू में विस्फोट करने के प्रयास किए। हालांकि, भारतीय एयर डिफेंस सिस्टम, जिसमें S-400 और आकाश मिसाइल सिस्टम शामिल हैं, ने इन हमलों को विफल कर दिया। पाकिस्तान ने दावा किया कि उसने भारतीय ड्रोन और मिसाइलों को मार गिराया, लेकिन भारतीय रक्षा मंत्रालय ने इस दावे को सिरे से नकारा। जम्मू में भारतीय सुरक्षा बलों ने बखूबी अपनी तैयारियों को साबित किया और नागरिकों को सुरक्षा प्रदान की।
इस बीच, पाकिस्तान के सेना प्रमुख जनरल क़मर जावेद बाजवा ने भारतीय कार्रवाई को एक “घातक गलती” करार दिया और भारत से कूटनीतिक और सैन्य दृष्टिकोण से जवाब देने की धमकी दी। लेकिन, भारतीय रक्षा मंत्रालय ने यह स्पष्ट कर दिया कि भारत किसी भी प्रकार के आक्रामक सैन्य कार्रवाई के लिए तैयार है, लेकिन प्राथमिकता शांति कायम रखना है।
इस संघर्ष का सबसे बड़ा असर आम नागरिकों पर पड़ा। पाकिस्तान में 31 नागरिकों की मौत और 75 से अधिक लोग घायल हो गए हैं। भारत में जम्मू-कश्मीर, पंजाब और हिमाचल प्रदेश के सीमावर्ती क्षेत्रों में नागरिकों को नुकसान उठाना पड़ा। भारतीय सुरक्षा बलों ने नागरिकों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए अतिरिक्त बल तैनात किया, और विभिन्न क्षेत्रों में राहत शिविर स्थापित किए गए।
पाकिस्तान में भी नागरिकों को सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए सेना की तैनाती की गई है। कुछ क्षेत्रों में तो पाकिस्तान सेना ने गांवों को खाली करवा लिया, जिससे एक मानवीय संकट उत्पन्न हो गया। इस संघर्ष से दोनों देशों के भीतर अस्थिरता और अव्यवस्था का माहौल बन गया है।
संघर्ष के बाद, अंतरराष्ट्रीय समुदाय ने दोनों देशों से संयम बरतने की अपील की है। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने भारत और पाकिस्तान से तत्काल शांति बहाली की आवश्यकता पर जोर दिया। अमेरिका और रूस ने भी दोनों देशों से कूटनीतिक रास्ते पर लौटने की अपील की है।
अमेरिका ने पाकिस्तान के साथ साथ भारत से भी यह सुनिश्चित करने की अपील की कि विवाद का हल युद्ध नहीं बल्कि वार्ता और कूटनीति से निकाला जाए। रूस और चीन ने भी इस मुद्दे पर गहरी चिंता व्यक्त की है और दोनों देशों से शांति स्थापित करने की कोशिशों में सहयोग की इच्छा जताई है।
यह संघर्ष यह स्पष्ट करता है कि भारत और पाकिस्तान के बीच शांति का रास्ता आसान नहीं है। दोनों देशों की सैन्य शक्ति और कूटनीतिक स्थिति का यह संघर्ष एक दूसरे के लिए चेतावनी का संदेश है कि यदि यह स्थिति नियंत्रण से बाहर हो जाती है, तो इसका क्षेत्रीय और वैश्विक स्तर पर गंभीर परिणाम हो सकता है।
भारत और पाकिस्तान को अपनी सैन्य कार्रवाइयों को सीमित करना होगा और आम नागरिकों की सुरक्षा को प्राथमिकता देनी होगी। इसके लिए दोनों देशों को आतंकवाद, सीमा विवाद, और क्षेत्रीय अस्थिरता जैसे मुद्दों पर ईमानदारी से वार्ता करनी होगी।
भारत और पाकिस्तान के बीच इस संघर्ष ने एक बार फिर यह स्पष्ट कर दिया कि केवल युद्ध और आक्रामकता से कोई स्थायी समाधान नहीं निकल सकता। दोनों देशों को समझदारी और संयम से काम लेते हुए, बातचीत और कूटनीति के माध्यम से ही इस संकट का समाधान निकालना होगा। युद्ध की स्थिति से बचने के लिए भारत और पाकिस्तान को अपने सैन्य अभियान और कूटनीतिक प्रयासों को संतुलित करना होगा, ताकि इस क्षेत्र में शांति बनी रहे।
संपूर्ण स्थिति में अंतत: यह भी ज़रूरी है कि दोनों देशों के बीच किसी भी प्रकार के शांति प्रयासों के लिए अंतरराष्ट्रीय समुदाय सक्रिय रूप से मध्यस्थता करें, ताकि इस संघर्ष का समाधान किसी भी पक्ष को नुकसान पहुँचाए बिना निकाला जा सके।