28.5 C
Lucknow
Sunday, August 24, 2025

सैनिकों का सम्मान – एक नई सांस्कृतिक परंपरा की आवश्यकता

Must read

शरद कटियार

देश की सीमाओं पर तैनात हमारे सैनिक (Soldiers) न केवल बाहरी दुश्मनों से हमारी रक्षा करते हैं, बल्कि हमारी स्वतंत्रता, अखंडता और संप्रभुता के प्रहरी भी हैं। उनके समर्पण और बलिदान की कोई तुलना नहीं हो सकती। वे हमारे असली नायक हैं, जिनके साहस, अनुशासन और निष्ठा के कारण ही हम चैन की नींद सो पाते हैं, त्योहार मना पाते हैं और अपनी दिनचर्या निडर होकर जी पाते हैं। लेकिन क्या हम, एक नागरिक होने के नाते, उनके प्रति अपने कर्तव्यों को निभा रहे हैं? क्या हम उनके बलिदान का पर्याप्त सम्मान करते हैं? या फिर हम उनका सम्मान केवल औपचारिक समारोहों और भाषणों तक सीमित रखते हैं?

यह समय है, जब हमें सैनिकों (soldiers) के प्रति अपने व्यवहार और सोच में परिवर्तन लाना होगा। हमें केवल दिखावे के सम्मान से आगे बढ़कर उनके लिए एक स्थायी और सशक्त सांस्कृतिक परंपरा की नींव रखनी होगी। यह परंपरा न केवल राष्ट्र की सुरक्षा के प्रति हमारी कृतज्ञता को व्यक्त करेगी, बल्कि आने वाली पीढ़ियों को भी राष्ट्रीय भावना से प्रेरित करेगी।

एक सैनिक की सेवा केवल बंदूक उठाने तक सीमित नहीं होती। वे आतंकवाद, घुसपैठ, प्राकृतिक आपदाओं और अनेक संकटों से देश को बचाने के लिए 24 घंटे तैयार रहते हैं। वे कठोर मौसम, भौगोलिक कठिनाइयों और मानसिक तनाव के बावजूद देश के लिए तत्पर रहते हैं। जब हम अपने परिवार के साथ सुरक्षित घरों में बैठे होते हैं, तब वे बर्फीली चोटियों पर या तपते रेगिस्तान में अपनी जान जोखिम में डालकर डटे रहते हैं।

वास्तव में, सैनिकों का जीवन अनुशासन, त्याग और साहस की मिसाल होता है। वे अपने परिवारों से महीनों दूर रहते हैं, अपने बच्चों की परवरिश, बुजुर्गों की देखभाल और पारिवारिक जिम्मेदारियों को पीछे छोड़कर मातृभूमि की रक्षा में लगे रहते हैं। हमारे समाज में सैनिकों के प्रति सम्मान की भावना जरूर है, लेकिन वह अधिकतर औपचारिकताओं में सिमटकर रह गई है। स्वतंत्रता दिवस, गणतंत्र दिवस या किसी युद्ध की वर्षगांठ पर उन्हें याद किया जाता है, कुछ सरकारी घोषणाएं होती हैं और फिर सबकुछ पहले जैसा हो जाता है। यह रवैया बदलने की जरूरत है।

हमें सैनिकों के सम्मान को अपनी दिनचर्या, अपनी सोच और अपने सामाजिक व्यवहार का हिस्सा बनाना होगा। यह सम्मान सिर्फ तिरंगे में लिपटे शवों तक सीमित न हो, बल्कि जीवित सैनिकों और उनके परिवारों को भी उतना ही सम्मान मिले। कल्पना कीजिए कि एक सैनिक ट्रेन में बिना आरक्षण खड़ा है, और एक सामान्य नागरिक सीट पर बैठा है – यह दृश्य हमें आत्मचिंतन के लिए मजबूर करता है।

क्या हम इतना भी नहीं कर सकते कि एक सीट देकर उसके साहस का सम्मान करें? यह कोई एहसान नहीं, बल्कि हमारा नैतिक कर्तव्य है। सड़क पर जाते समय यदि कोई सैनिक दिखे, तो उसे उसके गंतव्य तक छोड़ना एक छोटा सा कार्य है, लेकिन इसका प्रभाव बहुत बड़ा है। इसी प्रकार, होटलों और ढाबों में सैनिकों को निशुल्क या रियायती सुविधा देना, उन्हें यह अहसास कराता है कि देश उनके साथ खड़ा है।

जिन परिवारों से सैनिक आते हैं, वे भी सम्मान के उतने ही अधिकारी हैं। वे अपने बेटे, पति, भाई या पिता को सीमाओं पर भेजते हैं, और हर पल चिंता और गर्व के बीच जीते हैं। उनकी भावनाओं और संघर्षों की अनदेखी नहीं की जा सकती। हमें स्कूलों, कॉलेजों और सार्वजनिक मंचों पर सैनिकों के परिवारों को आमंत्रित करना चाहिए, उनके अनुभवों को सुनना और समझना चाहिए। इससे समाज में सैनिकों के योगदान के प्रति गहरी समझ विकसित होगी। हमारे देश में हर छोटे-बड़े त्यौहार पर देवी-देवताओं के लिए भंडारे, कीर्तन और जागरण होते हैं। क्या हम सैनिकों के लिए भी ऐसे आयोजन नहीं कर सकते?

हर गाँव, हर शहर में “सैनिक सम्मान दिवस” मनाया जाना चाहिए। स्कूली पाठ्यक्रमों में सैनिकों की वीरता की कहानियाँ शामिल की जानी चाहिए। समाज में ऐसी संस्कृति विकसित हो जहाँ सैनिकों को विशेष स्थान मिले। उदाहरण के तौर पर, विवाह या अन्य सामाजिक आयोजनों में सैनिकों को मुख्य अतिथि के रूप में आमंत्रित किया जाए।

देश के हर होटल, रेस्तरां, शॉपिंग मॉल और परिवहन सेवा को यह पहल करनी चाहिए कि वे सैनिकों को विशेष रियायतें और सुविधाएं दें। इसके लिए सरकार को भी प्रेरक नीतियाँ बनानी चाहिए। एक छोटा सा बोर्ड – “यहाँ सैनिकों का विशेष सम्मान है” – भी बहुत बड़ा संदेश देता है। मीडिया को चाहिए कि वह सैनिकों की वीरगाथाओं को नियमित रूप से प्रसारित करे। समाचार पत्रों में सैनिकों के विशेष कॉलम हों, टेलीविजन पर उनके

योगदान पर आधारित कार्यक्रम हों, और डिजिटल माध्यमों से युवाओं को प्रेरित किया जाए। सोशल मीडिया पर सैनिकों के सम्मान को एक अभियान का रूप दिया जा सकता है। #RespectOurSoldiers, #SaluteToBravehearts जैसे हैशटैग के साथ सकारात्मक संदेश और कहानियाँ साझा की जा सकती हैं। सरकार को चाहिए कि वह सैनिकों और उनके परिवारों के लिए कल्याणकारी योजनाएं लाए और उनका प्रभावी क्रियान्वयन सुनिश्चित करे।

पेंशन, चिकित्सा सुविधा, बच्चों की शिक्षा और पुनर्वास की व्यवस्थाएं मजबूत की जानी चाहिए। साथ ही, प्रशासन को चाहिए कि वह ऐसे सभी प्रयासों में सक्रिय सहयोग करे। यह समय है कि हम सैनिकों के प्रति सम्मान को केवल प्रतीकों और औपचारिकताओं से ऊपर उठाकर जीवन की संस्कृति में शामिल करें। यह सम्मान केवल कुछ विशेष अवसरों तक सीमित न रहे, बल्कि हर दिन, हर अवसर पर झलके।

सैनिकों के बलिदान को शब्दों से नहीं चुकाया जा सकता, लेकिन हमारे व्यवहार से, हमारी सोच से और हमारे सामाजिक ढाँचे से हम उन्हें वह सम्मान दे सकते हैं जिसके वे वास्तव में अधिकारी हैं।आइए, हम एक नई परंपरा की शुरुआत करें – जहाँ हर नागरिक, हर संस्था, हर संगठन सैनिकों का सम्मान करे, और यह सम्मान केवल कहने भर का न हो, बल्कि वह उनके जीवन को सरल, सुरक्षित और सम्मानजनक बनाने में योगदान दे। सैनिकों का सम्मान केवल राष्ट्रभक्ति नहीं, बल्कि राष्ट्रीय चरित्र का परिचायक है।

जय हिंद!

शरद कटियार
ग्रुप एडिटर
यूथ इंडिया न्यूज ग्रुप

 

Must read

More articles

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Latest article