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Saturday, August 9, 2025

गंगा घाटों पर थम गई सफाई की रफ्तार: न सामाजिक संगठन सक्रिय, न नमामि गंगे प्रोजेक्ट में दिख रही तेजी

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– गंगा की गोद में फिर लौट आई गंदगी, आंकड़े बता रहे हैं असल हालात

फर्रुखाबाद। एक समय था जब गंगा घाटों की सफाई को लेकर जिले में सामाजिक संगठन और प्रशासन दोनों सक्रिय नजर आते थे। ‘नमामि गंगे’ जैसी महत्वाकांक्षी परियोजना के तहत कई कार्यक्रम आयोजित हुए, सफाई अभियान चले और घाटों को सुंदर व स्वच्छ बनाने के संकल्प लिए गए। मगर आज हालात यह हैं कि न तो सामाजिक संगठन गंगा की सफाई को लेकर गंभीर नजर आते हैं और न ही प्रशासन की ओर से कोई विशेष गतिविधि देखी जा रही है।
फर्रुखाबाद के प्रसिद्ध पंचाल घाट, शमशान घाट, हनुमान घाट और कई घाट पर अब फिर से गंदगी लौट आई है। जगह-जगह प्लास्टिक कचरा, फूलमाला, पूजा सामग्री और शव दाह के बाद की अवशेष सामग्री बिखरी पड़ी रहती है। नगर पालिका की नियमित सफाई व्यवस्था भी अब इन घाटों पर नाममात्र की रह गई है।

नमामि गंगे की रफ्तार भी थमी

जिले में नमामि गंगे प्रोजेक्ट के तहत 2020 से 2023 के बीच करीब 6.74 करोड़ रुपये स्वीकृत हुए, जिनमें से महज 3.11 करोड़ रुपये का ही उपयोग हो सका। वर्ष 2024 में अब तक कोई ठोस प्रोजेक्ट कार्य प्रारंभ नहीं हुआ है। गंगा के किनारे बनाए गए घाटों की मरम्मत तक नहीं कराई गई है, जबकि मानसून के चलते कई घाट टूट-फूट की स्थिति में हैं।
एक समय सफाई को लेकर जागरूकता फैलाने वाले संगठन – गंगा सेवा समिति, साहस इंडिया, युवा शक्ति मंच – अब केवल आयोजनों तक सीमित हो गए हैं। पिछले एक वर्ष में केवल कुछ ही सफाई अभियान दर्ज हुए हैं, जबकि 2022 में यह संख्या 12 थी।

स्थानीय नागरिकों की चिंता बढ़ी

स्थानीय निवासी राजेश शुक्ला कहते हैं, “गंगा हमारी आस्था की प्रतीक हैं। गंदगी और प्रशासन की अनदेखी से मां गंगा का अपमान हो रहा है। पहले हर रविवार को सफाई अभियान होता था, अब महीनों बीत जाते हैं और कोई नहीं आता।”
नगर पालिका ईओ ने बताया कि, “स्वच्छता अभियान की जिम्मेदारी साझा प्रयासों से पूरी होनी चाहिए। हम फिर से घाटों पर फोकस करने की योजना बना रहे हैं।” वहीं, नमामि गंगे परियोजना से जुड़े एक अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि राज्य से नई फंडिंग रुकी हुई है, इस वजह से काम ठप है।

गंगा सिर्फ एक नदी नहीं, बल्कि करोड़ों लोगों की आस्था का केंद्र हैं। उनकी गोद में लौटती गंदगी न सिर्फ धार्मिक दृष्टिकोण से चिंताजनक है, बल्कि यह स्वास्थ्य और पर्यावरण के लिहाज से भी गंभीर खतरा है। प्रशासन, सामाजिक संगठन और आम नागरिक – तीनों की जिम्मेदारी है कि मां गंगा की सफाई और सम्मान में कोई कमी न आने दें।

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