शरद कटियार | यूथ इंडिया
गंगा—यह शब्द केवल एक नदी का बोध नहीं कराता, बल्कि एक सांस्कृतिक, धार्मिक और जीवनदायिनी पहचान से भी जुड़ा है। भारतवर्ष की आत्मा कही जाने वाली इस नदी को ‘मां’ का दर्जा प्राप्त है। लेकिन जब मां की गोद में पलने वाले जलजीव खुलेआम मारे जाएं और पूरे तंत्र की आंखों पर पट्टी बंधी रहे, तो सवाल उठना लाजमी है।
हरिद्वार से संगम तक प्रतिबंधित, फर्रुखाबाद में खुलेआम उल्लंघन
उत्तराखंड के हरिद्वार से लेकर उत्तर प्रदेश के प्रयागराज स्थित संगम तक गंगा नदी में मोटर बोट्स के संचालन पर स्पष्ट और सख्त प्रतिबंध है। इसके पीछे प्रमुख कारण है इन मोटरबोटों के प्रॉपेलर से उत्पन्न ध्वनि और कंपन जो मछलियों, कछुओं और जल में रहने वाले अन्य जैविक जीवन को गंभीर क्षति पहुंचाते हैं।
नमामि गंगे योजना और जल निगम से जुड़े दिशा-निर्देशों में भी स्पष्ट रूप से उल्लेख है कि गंगा में केवल पारंपरिक, मानव-चालित या नॉन-मोटराइज्ड नावें ही चल सकती हैं। इसके बावजूद, फर्रुखाबाद के पांचाल घाट क्षेत्र में एक खास जाति विशेष के लोगों द्वारा मोटर बोट्स का खुलेआम संचालन किया जा रहा है। यह पर्यावरणीय असंतुलन के साथ-साथ सामाजिक ताने-बाने पर भी आघात है।
विशेषज्ञों के अनुसार, मोटर बोट्स के प्रॉपेलर पानी के भीतर बहुत तीव्र गति से घूमते हैं जिससे जल में रहने वाले मछलियों, कछुओं, मॉलस्क और सूक्ष्म जीवों के जीवन चक्र पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। ध्वनि प्रदूषण और कंपन से वे भ्रमित हो जाते हैं, अपनी दिशा खो बैठते हैं, और कई बार सीधे कटकर मर जाते हैं। कई बार ये घटनाएं स्थानीय मछुआरों द्वारा भी देखी गई हैं, लेकिन भयवश वे आवाज़ नहीं उठाते।
यह कोई एक-दो दिन की बात नहीं है। पांचाल घाट पर यह गतिविधि वर्षों से चल रही है। इस ओर न तो जल पुलिस, न नाव संचालन विभाग, न नगर निगम और न ही जिले का कोई पर्यावरण अधिकारी गंभीरता से सक्रिय हुआ।
सवाल है कि जब यह प्रतिबंध पूरे उत्तर भारत के गंगा तटों पर लागू है, तो फिर फर्रुखाबाद में इसकी छूट क्यों?
क्या यह प्रशासनिक उदासीनता है या फिर स्थानीय जातिगत समीकरणों की एक उपज?
जिलाधिकारी ने लिया संज्ञान—लेकिन क्या ठोस कार्रवाई होगी?
जब यह मामला जिलाधिकारी आशुतोष कुमार द्विवेदी के संज्ञान में लाया गया, तो उन्होंने इसे “मानवी दृष्टिकोण से अति संवेदनशील” बताते हुए कार्रवाई का आश्वासन दिया। उनका कहना था—”गंगा सिर्फ आस्था नहीं, वह हमारे जैविक तंत्र की जीवनरेखा है। इसमें रहने वाले जीवों की सुरक्षा हमारी नैतिक और प्रशासनिक जिम्मेदारी है।”
यह पहली बार है जब प्रशासन ने इस मुद्दे पर संवेदनशीलता दिखाई है। लेकिन सवाल वही है—क्या कार्रवाई होगी? क्या मोटर बोट्स जब्त होंगी? क्या दोषियों पर आपराधिक धाराओं में मुकदमा चलेगा? या यह आश्वासन भी अन्य आश्वासनों की तरह कागजों में सिमट जाएगा?
जब जिले में सामाजिक सद्भाव की बात आती है, तो राजनीति और प्रशासन दोनों ही तुरंत सक्रिय हो जाते हैं। छोटी सी टिप्पणी भी गंगा-जमुनी तहजीब को खंडित करने के आरोपों में तूल पकड़ लेती है। लेकिन जब गंगा की गोद में पलने वाले निर्दोष प्राणियों का बध होता है—तो न कोई राजनेता बोलता है, न कोई सामाजिक संगठन। यह मौन भी एक प्रकार का अपराध है।
गंगा की पवित्रता, उसकी जैव विविधता और सामाजिक समरसता को बचाने के लिए अब सिर्फ योजनाओं की घोषणाएं और फोटू खिंचवाना पर्याप्त नहीं। अब समय है कि ठोस और पारदर्शी कार्रवाई हो। मोटर बोट्स का संचालन पूरी तरह से रोका जाए, दोषियों पर मुकदमा दर्ज हो, और गंगा को फिर से उसकी मूल स्थिति में लौटाने के लिए ठोस रणनीति बनाई जाए।
गंगा सिर्फ जल नहीं है, यह हमारी संस्कृति, आस्था, और भावनात्मक जुड़ाव का केंद्र है। यदि हम इसे नहीं बचा सके, तो हम आने वाली पीढ़ियों को क्या जवाब देंगे?


