शरद कटियार
“अब और नहीं!”— यह केवल भावनात्मक उद्घोष नहीं, बल्कि आज के भारत की सुरक्षा नीति का मूल मंत्र बन चुका है। जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुआ हालिया आतंकी हमला न केवल देश की आत्मा को झकझोर देने वाला है, बल्कि यह घटना उस क्रूर और वीभत्स मानसिकता का परिचायक है, जो पाकिस्तान समर्थित आतंकवाद की कोख से जन्म लेती है।जब देश मानसून की बूंदों का स्वागत कर रहा था, तब पहलगाम में आतंक की आंधी चली। एक शांत धार्मिक यात्रा पर निकले तीर्थयात्रियों के काफिले पर सुनियोजित हमला हुआ। महिलाएं, बच्चे, बुजुर्ग – कोई भी आतंकियों की क्रूरता से बच नहीं सका। इस हमले में कई लोगों की जान गई और दर्जनों घायल हुए।
यह हमला केवल इंसानों पर नहीं, बल्कि इंसानियत पर था। हिन्दू श्रद्धालुओं को निशाना बनाना, महिलाओं के सिंदूर को लहूलुहान करना – यह बताता है कि आतंकवाद की आग अब और अधिक असहनीय हो चुकी है।
भारत लंबे समय से पाकिस्तान पर आतंकवाद को प्रश्रय देने का आरोप लगाता रहा है। लेकिन पहलगाम जैसे हमले यह साबित करते हैं कि पाकिस्तान की सरकार और उसकी सेना, दोनों ही अपनी रणनीतिक गहराई के हिस्से के रूप में आतंकियों को संरक्षण देते रहे हैं। लश्कर-ए-तैयबा, जैश-ए-मोहम्मद जैसे आतंकी संगठन केवल नाम हैं, इनके पीछे की असल ताकत रावलपिंडी से आती है।
घटना के अगले ही दिन दिल्ली स्थित पाकिस्तान उच्चायोग में एक कर्मचारी को केक लेकर जाते देखा गया। मीडिया के सवालों पर चुप्पी साध लेना यह संकेत देता है कि कहीं न कहीं यह आतंकी सफलता उनके लिए उत्सव का विषय थी। यह घटना भी अनेक सवाल खड़े करती है:
क्या पाकिस्तान को अब भी आतंकी देश घोषित करने से अंतरराष्ट्रीय समुदाय हिचकिचाएगा?
क्या भारत को कूटनीति से आगे बढ़कर सीधी कार्यवाही का रास्ता अपनाना चाहिए?
आतंकवाद अब सिर्फ बम और गोलियों तक सीमित नहीं रहा। यह अब विचारधारा, डिजिटल नेटवर्किंग, फंडिंग और ड्रोन टेक्नोलॉजी तक फैल चुका है। पाकिस्तान के मदरसों से निकले जिहादी युवा, अब सोशल मीडिया से लैस होकर भारत के खिलाफ नफरत फैलाते हैं। पहलगाम हमला भी उसी डिजिटल कट्टरवाद का नतीजा हो सकता है, जिसमें स्थानीय युवाओं को गुमराह कर हथियार थमाए जाते हैं।
सीएम योगी आदित्यनाथ से लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तक, देश का नेतृत्व अब स्पष्ट शब्दों में यह संकेत दे चुका है कि “आतंकवाद के ताबूत पर अंतिम कील ठोकने का समय आ चुका है।”
भारत की कूटनीतिक नीति अब धीरे-धीरे अधिक सक्रिय और आक्रामक होती जा रही है। सर्जिकल स्ट्राइक, एयर स्ट्राइक और अब साइबर निगरानी – यह सब इस बात का प्रमाण हैं कि भारत अब केवल सहने वाला देश नहीं रहा।
उत्तर भारत के शहरों से लेकर दक्षिण भारत के गांवों तक, हर जगह गुस्सा है। कानपुर में विहिप, बजरंग दल और कई सामाजिक संगठनों ने सड़कों पर उतरकर पाकिस्तान के खिलाफ नारेबाजी की। युवाओं ने शहीदों को श्रद्धांजलि देते हुए मांग की कि भारत को आतंकवाद के खिलाफ निर्णायक युद्ध की घोषणा करनी चाहिए।
कानपुर जैसे औद्योगिक शहरों में जब आम नागरिक इस स्तर की भावना व्यक्त करें, तो यह दर्शाता है कि राष्ट्र की चेतना जागृत हो चुकी है। अब केवल सेना नहीं, पूरा देश आतंकवाद के खिलाफ मोर्चे पर खड़ा है।
संयुक्त राष्ट्र, अमेरिका, यूरोप और खाड़ी देश – सभी जानते हैं कि पाकिस्तान की धरती से भारत के खिलाफ आतंकवाद संचालित होता है। लेकिन राजनयिक हितों और सामरिक समीकरणों के कारण वे खुलकर बोलने से बचते हैं।
अब वक्त है कि भारत इस विषय को एक बार फिर अंतरराष्ट्रीय मंचों पर लेकर जाए और पाकिस्तान को आतंकी राष्ट्र घोषित करवाने की मुहिम तेज करे। FATF की ग्रे लिस्ट में डालना या वित्तीय प्रतिबंध लगाना अब पर्याप्त नहीं है।
हर भारतीय नागरिक की भी जिम्मेदारी बनती है कि वह आतंक के खिलाफ जागरूक रहे। सोशल मीडिया पर फैल रही अफवाहों से बचें, संदिग्ध गतिविधियों की जानकारी प्रशासन को दें और राष्ट्रहित में एकजुट रहें।
शिक्षा, रोजगार और तकनीक के जरिए कश्मीर के युवाओं को मुख्यधारा में लाना भी जरूरी है ताकि उन्हें बहकाना आसान न हो।
अब कोई भ्रम नहीं। न कोई छूट। न कोई सहानुभूति। जो मानवता के खिलाफ हथियार उठाए, वह दया का पात्र नहीं हो सकता। पहलगाम की घटना ने भारत को यह सोचने पर मजबूर कर दिया है कि अब शब्द नहीं, बल्कि कर्म चाहिए।
पाकिस्तान को स्पष्ट संदेश देने का समय आ गया है – या तो आतंकियों को खत्म करो, या अंजाम भुगतने को तैयार रहो।
आतंकवाद को जड़ से उखाड़ फेंकना अब केवल एक लक्ष्य नहीं, यह राष्ट्र धर्म बन चुका है। पहलगाम के हर शहीद का खून यह पुकार रहा है – अब आर-पार की लड़ाई होनी चाहिए।