भारत में सरकारी विभागों में पारदर्शिता और जवाबदेही की मांग लंबे समय से की जाती रही है, लेकिन हाल ही में रक्षा मंत्रालय के वरिष्ठ ऑडिटर दीप नारायण यादव की गिरफ्तारी ने इस मुद्दे को एक बार फिर चर्चा में ला दिया है। केंद्रीय जांच एजेंसी (CBI) द्वारा घूसखोरी के इस मामले का खुलासा न केवल प्रशासनिक भ्रष्टाचार (Corruption) को दर्शाता है बल्कि यह भी दिखाता है कि किस तरह रक्षा क्षेत्र तक भ्रष्टाचार की जड़ें फैली हुई हैं।
इस संपादकीय में हम इस पूरे प्रकरण की व्यापक समीक्षा करेंगे और यह समझने का प्रयास करेंगे कि यह घटना भारत की शासन व्यवस्था, विशेष रूप से रक्षा मंत्रालय की कार्यप्रणाली, पर क्या प्रभाव डालती है। साथ ही, इस मामले से जुड़े प्रमुख पहलुओं, कानूनी पक्ष, प्रशासनिक सुधारों की आवश्यकता और भविष्य में ऐसे अपराधों को रोकने के उपायों पर भी चर्चा करेंगे।
भ्रष्टाचार भारत में कोई नया मुद्दा नहीं है, लेकिन जब यह देश की सुरक्षा व्यवस्था से संबंधित मंत्रालयों तक पहुंच जाता है, तो यह और भी गंभीर हो जाता है। रक्षा लेखा विभाग में वरिष्ठ ऑडिटर के रूप में कार्यरत दीप नारायण यादव पर आरोप है कि उन्होंने एक कारोबारी से उसके लंबित बिलों को पास करने के लिए 10 लाख रुपये की रिश्वत मांगी। यदि यह मामला उजागर न हुआ होता, तो संभव है कि यह घूसखोरी सिलसिला लगातार जारी रहता।
यह कोई अकेली घटना नहीं है। देश में रक्षा आपूर्ति से जुड़े कई मामलों में समय-समय पर भ्रष्टाचार के मामले सामने आते रहे हैं। इससे पहले भी रक्षा सौदों में दलाली और रिश्वतखोरी के आरोप लगे हैं, जिनमें बोफोर्स घोटाला, अगस्ता वेस्टलैंड हेलीकॉप्टर घोटाला और हाल ही में राफेल सौदे पर विवाद शामिल हैं। यह बताता है कि रक्षा क्षेत्र में पारदर्शिता और ईमानदारी सुनिश्चित करना आज भी एक चुनौती बनी हुई है।
इस मामले में सीबीआई की सतर्कता और कार्रवाई सराहनीय रही। कारोबारी ने जब घूस मांगे जाने की शिकायत की, तो सीबीआई ने तत्काल कार्रवाई करते हुए पूरे मामले का पर्दाफाश किया। सबसे पहले, घूस की पहली किश्त लेने वाले कर्मचारी दिनेश को रंगे हाथ पकड़ा गया, फिर उसके मालिक आकाश कपूर को हिरासत में लिया गया। पूछताछ के बाद आखिरकार वरिष्ठ ऑडिटर दीप नारायण यादव की संलिप्तता उजागर हुई और उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया।
यह पूरी जांच प्रक्रिया दर्शाती है कि यदि भ्रष्टाचार से निपटने के लिए एजेंसियां सक्रिय रहें और आम नागरिक भी इस तरह की घटनाओं की शिकायत करने से न डरें, तो बड़ी से बड़ी अनियमितताओं को उजागर किया जा सकता है। लेकिन क्या केवल सीबीआई की कार्रवाई ही भ्रष्टाचार को रोकने के लिए पर्याप्त है?
रक्षा मंत्रालय देश की सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण फैसले लेता है और उसके तहत चलने वाले विभागों की वित्तीय गतिविधियों का लेखा-जोखा रखना आवश्यक होता है। हालांकि, कई बार मंत्रालय के अधीन काम करने वाले अधिकारियों को मनमानी करने का अवसर मिल जाता है।
रक्षा क्षेत्र में घूसखोरी और वित्तीय अनियमितताओं का बड़ा कारण यह है कि अधिकतर रक्षा सौदे गोपनीय होते हैं। इन सौदों से जुड़े फाइलों को आम जनता या मीडिया के लिए आसानी से उपलब्ध नहीं कराया जाता। परिणामस्वरूप, जिन अधिकारियों के हाथों में यह शक्तियां होती हैं, वे इसका दुरुपयोग करते हैं।
भारत में रक्षा बजट हर साल बढ़ाया जाता है, लेकिन यदि भ्रष्टाचार इसी तरह जारी रहा तो रक्षा उपकरणों की खरीद, आपूर्ति और मेंटेनेंस पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा।
जब रक्षा मंत्रालय से जुड़े विभागों में भ्रष्टाचार होता है, तो यह केवल आर्थिक अपराध नहीं होता, बल्कि यह सीधे-सीधे राष्ट्रीय सुरक्षा को भी प्रभावित करता है। यदि रक्षा लेखा विभाग में अनियमितताएं जारी रहती हैं, तो इससे रक्षा आपूर्ति में देरी हो सकती है। सैनिकों को समय पर आवश्यक हथियार और अन्य संसाधन नहीं मिलेंगे, जिससे उनकी क्षमताओं पर असर पड़ सकता है।
इसके अलावा, यदि रिश्वतखोरी के कारण संदिग्ध या अयोग्य कंपनियों को रक्षा उपकरणों की आपूर्ति करने की अनुमति मिलती है, तो इससे देश की सुरक्षा खतरे में पड़ सकती है। इसलिए, यह जरूरी है कि रक्षा क्षेत्र से जुड़े मामलों में पारदर्शिता और निगरानी को और अधिक सख्त किया जाए।
इस घटना से सीख लेते हुए सरकार को निम्नलिखित सुधार लागू करने की आवश्यकता है जैसे रक्षा मंत्रालय से जुड़े वित्तीय मामलों को अधिक पारदर्शी बनाया जाना चाहिए। सभी सरकारी सौदों की नियमित जांच होनी चाहिए और ऑडिट रिपोर्ट को सार्वजनिक किया जाना चाहिए। रक्षा सौदों और भुगतान प्रक्रियाओं की निगरानी के लिए एक स्वतंत्र एजेंसी बनाई जानी चाहिए, जो नियमित रूप से सभी मामलों की जांच करे। रक्षा लेखा विभाग में सभी भुगतान और लेन-देन को डिजिटल माध्यम से किया जाना चाहिए, ताकि भ्रष्टाचार की संभावना कम हो। इस तरह के अपराधों के लिए कड़े कानून लागू किए जाने चाहिए, जिसमें दोषी पाए जाने वाले अधिकारियों को आजीवन प्रतिबंधित किया जाए और उनकी संपत्तियों को जब्त करने का प्रावधान हो। सरकार को उन कर्मचारियों और नागरिकों की सुरक्षा सुनिश्चित करनी चाहिए जो भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाते हैं। अगर कारोबारी ने डर के कारण सीबीआई को शिकायत नहीं की होती, तो यह मामला कभी उजागर नहीं हो पाता।रक्षा मंत्रालय के वरिष्ठ ऑडिटर की गिरफ्तारी ने यह साबित कर दिया है कि भ्रष्टाचार किस हद तक सरकारी तंत्र में व्याप्त है। हालांकि, सीबीआई की कार्रवाई एक सकारात्मक संकेत है कि कानून का पालन करवाने के लिए सख्ती बरती जा रही है।
लेकिन सवाल यह है कि क्या यह अकेली कार्रवाई पर्याप्त है? अगर हम वाकई में सरकारी विभागों को भ्रष्टाचार मुक्त बनाना चाहते हैं, तो हमें पारदर्शिता, जवाबदेही और सख्त कानूनी प्रावधानों की दिशा में ठोस कदम उठाने होंगे।
देश की सुरक्षा से जुड़ा हर विभाग अगर निष्पक्षता और ईमानदारी से काम करे, तो हम अपने सशस्त्र बलों को मजबूत कर सकते हैं और एक सुरक्षित भारत की नींव रख सकते हैं। अब वक्त आ गया है कि सरकार न केवल इस मामले में दोषियों को सजा दे, बल्कि ऐसे अपराधों को जड़ से खत्म करने के लिए व्यापक सुधार लागू करे।