– नई कर नीति: जनता के लिए एक और झटका
शरद कटियार
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा घोषित बजट 2025 में एक नई कर नीति ने आम जनता, विशेष रूप से मध्यम वर्ग, को निराश कर दिया है। सरकार ने पुराने और सेकेंड-हैंड वाहनों की बिक्री पर 18% जीएसटी (वस्तु एवं सेवा कर) लागू करने का फैसला किया है, जो पहले 12% था। यह निर्णय न केवल आम जनता पर अतिरिक्त वित्तीय बोझ डालेगा बल्कि ऑटोमोबाइल सेक्टर पर भी नकारात्मक प्रभाव डालेगा।
सरकार ने स्पष्ट किया है कि यह कर दर केवल उस मार्जिन पर लागू होगी, जो वाहन के खरीद मूल्य और बिक्री मूल्य के बीच का अंतर है। उदाहरण के लिए, अगर किसी डीलर ने एक पुरानी कार ₹10 लाख में खरीदी और उसे ₹8 लाख में बेचा, तो ₹2 लाख के मार्जिन पर 18% यानी ₹36,000 जीएसटी देना होगा। हालांकि, यदि कोई व्यक्ति अपनी निजी कार किसी दूसरे व्यक्ति को बेचता है, तो उस पर यह कर लागू नहीं होगा।
भारत में पुरानी कारों का बाजार तेजी से बढ़ रहा है। कारDekho की एक रिपोर्ट के अनुसार, देश में हर साल लगभग 50 लाख पुरानी कारें बेची जाती हैं, जबकि नई कारों की बिक्री इससे कम होती है। बढ़ती महंगाई और ईंधन की कीमतों के बीच, मध्यम वर्ग के लिए नई कार खरीदना मुश्किल होता जा रहा है। ऐसे में, सेकेंड-हैंड वाहनों पर अतिरिक्त कर लगाने से उनकी कीमतें और बढ़ जाएंगी, जिससे आम जनता को और अधिक आर्थिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ेगा।
पुरानी कारों का कारोबार करने वाले डीलरों के लिए भी यह फैसला एक बड़ा झटका साबित होगा। पहले से ही बढ़ती प्रतिस्पर्धा और वित्तीय अस्थिरता से जूझ रहे ऑटोमोबाइल डीलरों को अब 18% जीएसटी का बोझ उठाना पड़ेगा, जिससे उनकी बिक्री प्रभावित होगी। विशेषज्ञों का मानना है कि इससे डीलरों की आय में 10-15% की गिरावट आ सकती है, जिससे बाजार में मंदी का माहौल बन सकता है।
सरकार ने यह निर्णय राजस्व बढ़ाने के उद्देश्य से लिया होगा, लेकिन इससे जनता पर आर्थिक दबाव बढ़ेगा। पहले ही महंगाई, ईंधन की कीमतों और ब्याज दरों के कारण लोगों की क्रय शक्ति कमजोर हुई है। ऐसे में, पुरानी कारों की बिक्री पर कर बढ़ाना एक गैर-जनहितैषी निर्णय प्रतीत होता है। सरकार को चाहिए कि वह इस नीति पर पुनर्विचार करे और मध्यम वर्ग के हितों को ध्यान में रखे, ताकि जनता की क्रय शक्ति बनी रहे और अर्थव्यवस्था को संतुलित रखा जा सके।