25 जून 1975 को लगी थी इमरजेंसी, 26 जून को मिली थी आम जनता को जानकारी
उपकार मणि ‘उपकार’
भारतीय लोकतंत्र के इतिहास में 25 जून 1975 की रात वह भयावह क्षण था, जब देश में आपातकाल की घोषणा की गई। इसे आज भी ‘लोकतंत्र का काला दिन’ कहा जाता है। तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद से अनुच्छेद 352 के तहत आपातकाल लगाने की सिफारिश की थी, जिसे रातोंरात मंजूरी दे दी गई। हालांकि, आम जनता को इसकी जानकारी 26 जून की सुबह रेडियो के माध्यम से दी गई।
आपातकाल की घोषणा की पृष्ठभूमि 12 जून 1975 के उस फैसले में छिपी थी, जब इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इंदिरा गांधी को चुनावी धांधली का दोषी पाया और उन्हें छह वर्षों तक किसी भी निर्वाचित पद पर आसीन होने से अयोग्य घोषित कर दिया। इस फैसले के बाद पूरे देश में विरोध-प्रदर्शनों की लहर दौड़ गई और राजनीतिक अस्थिरता ने जोर पकड़ लिया। इंदिरा सरकार ने इसे आंतरिक संकट बताया और राष्ट्रीय सुरक्षा के नाम पर आपातकाल लागू कर दिया।
आपातकाल के दौरान नागरिक अधिकारों पर बुरी तरह अंकुश लगाया गया। प्रेस की स्वतंत्रता समाप्त कर दी गई और सेंसरशिप लागू कर दी गई। हजारों विपक्षी नेताओं और कार्यकर्ताओं को जेल में डाल दिया गया। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) सहित 24 संगठनों पर प्रतिबंध लगा दिया गया। दिल्ली और अन्य शहरों में जबरन नसबंदी अभियान और झुग्गी बस्तियों को उजाड़ने जैसी कठोर नीतियां लागू की गईं।
इतिहासकारों और राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि आपातकाल का मुख्य उद्देश्य इंदिरा गांधी की सत्ता को बचाना था। विरोधी आवाज़ों को दबाना, राजनीतिक विरोध को कुचलना और तानाशाही शासन लागू करना इसके पीछे की मंशा थी। इसी कारण से 25 जून को आज भी देशभर में ‘काला दिवस’ के रूप में याद किया जाता है।
आपातकाल हटने के बाद मार्च 1977 में आम चुनाव कराए गए, जिनमें जनता पार्टी ने ‘वन इज टू वन’ के फॉर्मूले पर एकजुट होकर कांग्रेस को करारी शिकस्त दी। खुद इंदिरा गांधी रायबरेली से चुनाव हार गईं और मोरारजी देसाई देश के पहले गैर-कांग्रेसी प्रधानमंत्री बने। यह लोकतंत्र की जीत और तानाशाही के अंत की मिसाल बन गया।
आपातकाल की 50वीं बरसी पर भारतीय जनता पार्टी एक बार फिर इसे ‘लोकतंत्र की हत्या’ का दिन बता रही है, वहीं कांग्रेस ने केंद्र की मोदी सरकार पर ‘अघोषित आपातकाल’ के 11 साल पूरे होने का आरोप लगाया है। कांग्रेस नेताओं का कहना है कि वर्तमान सरकार लोकतंत्र के मूल्यों को दबा रही है।
आपातकाल भारतीय राजनीति का ऐसा अध्याय है, जिसकी छाया आज भी बहस और विमर्श में जीवित है। यह एक ऐसा दौर था जब लोकतंत्र की नींव हिल गई थी, लेकिन देश की जनता ने समय आने पर लोकतंत्र को फिर स्थापित कर दिखाया कि भारत की आत्मा में लोकतंत्र ही बसा है।